कई लोग गलती से मानते हैं कि इस्लाम दुनिया में मौजूद अन्य धर्मों के अस्तित्व को सहन नहीं करता है। यह लेख स्वयं पैगंबर मुहम्मद द्वारा अन्य धर्मों के लोगों के साथ व्यवहार करने के लिए रखी गई कुछ नींवों पर चर्चा करता है, उनके जीवनकाल के व्यावहारिक उदाहरणों के साथ। भाग 2: पैगंबर के जीवन के और उदाहरण जो अन्य धर्मों के प्रति उनकी सहनशीलता को दर्शाते हैं।
एक गुमराह हुआ लड़का पेंटेकोस्टल चर्च के माध्यम से अपना उद्धार पाता है और 20 साल की उम्र में पुरोहिती के लिए उसके आह्वान का जवाब देता है, जो बाद में मुसलमान बना। भाग 1
पैगंबर मुहम्मद की भविष्यवाणियां जो उनके जीवनकाल में और उनकी मृत्यु के बाद पूरी हुईं। ये भविष्यवाणियाँ मुहम्मद की भविष्यवाणी के स्पष्ट प्रमाण हैं कि ईश्वर की दया और आशीर्वाद उस पर हो।
मरयम की इस्लामी अवधारणा पर चर्चा करने वाले तीन लेखों का तीसरा और आखिरी लेख: भाग 3: यीशु का जन्म, और इस्लाम द्वारा यीशु की माँ मरियम को दिया गया महत्व और सम्मान।
इस दूसरे लेख में वास्तविक उदाहरण और कहानियां है जिससे हमें यह पता चलेगा की हर व्यक्ति की जीवन में कुछ ऐसी बाधाएं होती हैं जिस पर उसका नियंत्रण होता है और कुछ ऐसी बाधाएं होती हैं जिस पर उसका नियंत्रण नही होता और जो बाधाएं उसके नियंत्रण से बाहर हो उसे सर्वशक्तिमान ईश्वर की तरफ से तक़दीर मान लेना चाहिए।
मुख्य वक्ता: Dr. Bilal Philips (transcribed from an audio lecture by Aboo Uthmaan)
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