मारिया लुईसा "मरियम" बर्नाबे, पूर्व-कैथोलिक, फिलीपींस (2 का भाग 1)
विवरण: हम सभी ईश्वर की पूजा करने के लिए एक स्वभाविक प्रवृत्ति के साथ पैदा हुए हैं और उनके लिए मेरी खोज बहुत कम उम्र में शुरू हो गई थी।
- द्वारा Maria Luisa “Maryam” Bernabe
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
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11 मार्च 2011, ईश्वर के प्रति मेरे पूर्ण समर्पण का दिन है। मैंने महीनों की जांच-पड़ताल के बाद मैंने शाहदह किया। मुझे इस्लाम की ओर ले जाने वाली परिस्थितियां आसान नहीं थीं। लेकिन अल्हम्दुलिल्लाह (ईश्वर का शुक्र है), अब मैं आखिरकार एक मुस्लिम (एक मुसलमान महिला) हूं।
आइए मैं आपके साथ इस्लाम के अपने सफ़र को साझा करती हूं।
मैं जन्म से रोमन कैथोलिक थी। मेरी मां कॉन्वेंट छोड़ने से पहले कई वर्षों तक एक नन थीं और उन्होंने हमें एक प्रार्थना भरे जीवन मे पाला। 7 साल की उम्र से ही उन्होंने मुझे ईश्वर के प्रति समर्पण और संसार में घटने वाली हर घटना को ईश्वर के उस फ़ैसले के रूप में स्वीकार करना सिखाया, जो आगे चलकर मेरे लिए फ़ायदेमद साबित होंगे।
अपने लिए ईश्वर के साथ एक व्यक्तिगत संबंध विकसित करने के बाद, मैं धार्मिक प्रचार संबंधी कार्यों से बहुत अधिक जुड़ी हुई थी। मैंने कैटकिज़म भी पढ़ाया और हाई स्कूल से स्नातक होने पर मुझे कैटकिस्ट ऑफ़ द ईयर अवॉर्ड से सम्मानित भी किया गया था। जिसके बाद आस्था के साथ ज़िंदगी जीना ही एक निरंतर सफ़र रहा है।
अपनी ज़िंदगी के एक बेहद ही महत्वपूर्ण मोड़ पर, मैंने एक मानवीय फाउंडेशन के लिए काम किया, जो धर्म की मान्यता के परे फिलीपींस के लोगों को प्रार्थना के लिए एकजुट करने की कल्पना पर आधारित एक परियोजना थी। फाउंडेशन ने इस भरोसे को कायम रखा कि हम सभी ईश्वर के एक पितृत्व के अधीन भाई-बहन हैं। फाउंडेशन से जुड़ने से पहले ही, मेरी इबादत से भरी ज़िंदगी सर्वशक्तिमान ईश्वर की ओर केंद्रित थी। जो हालांकि, निश्चित रूप से, घर और स्कूल में कैथोलिक धर्म से जुड़े रहने का असर था, मेरे अंदर चर्च के कुछ संतों के प्रति थोड़ी भक्ति विकसित हो गई थी, मैं उन्हें किसी देवता के अनुरूप में नहीं मानती थी, बल्कि उन्हें इबादत करने में सही राह दिखाने वाले साथियों के रूप में देखती थी। एक समय था जब मैं खुद से सवाल करती थी कि आशीर्वाद देने में संतों में से कौन सबसे अधिक असरदार हैं। और इसलिए, मैं अंततः फिर से सीधे ईश्वर से दुआ मांगा करती थी यह जानते हुए कि वह आशीर्वाद का मुख्य स्रोत है- जो सर्वोपरि, सर्वशक्तिमान है।
जब मेरी मां ल्यूकेमिया की बीमारी से ग्रसित हुईं और उनकी बीमारी ने गंभीर रूप ले लिया, वही मेरे लिए असल संघर्ष का दौर था। एक मोड़ पर, मैं ईश्वर की इबादत कर रही थी और उनसे गुज़ारिश कर रही थी कि वह मेरी मां की बीमारी मुझे दे दे और मेरी सेहत उन्हें दे दे ताकि उनकी बीमारी को मैं सहन कर सकूं। यह मेरी मां की चिकित्सीय हालात के ठीक होने की उम्मीद में संभावनाओं की कभी ना खत्म होने वाली जद्दोज़ेहद थी। जब हमारे इलाक़े के पुरोहित और करीबी पारिवारिक मित्र ने कहा - समर्पण करें... ईश्वर के आगे समर्पण करें। तब, मुझे फिर से समर्पण करने का याद आया, खासकर तब जब मेरी मां की बीमारी ठीक होने का नाम नहीं ले रही थी और कीमोथेरेपी का उन पर कोई असर नहीं हो रहा था।
मेरी मां की मृत्यु मेरी ज़िंदगी का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। उस समय के बाद से, मेरा जीवन ईश्वर के आगे पूर्ण समर्पण और अधीनता के लिए निरंतर संघर्ष भरा रहा। मेरा अहंकार मुझे अपने फैसलों पर टिके रहने के लिए प्रेरित करने लगे - उनकी कमी की पूर्ति करने के लिए ईश्वर के दिखाए कई निशानी और इशारों के बावजूद बेतुके संघर्ष करना मेरे जीवन का हिस्सा बन गए। इन सब के दौरान, मुझे केवल तभी शांति मिलती थी जब मैं समर्पण करती थी। लेकिन निर्बल इंसान होने की वजह से, मैं हमेशा ही अपने तरीके से चीजों को हासिल करने के जाल में फंस जाया करती थी।
मेरी मां की मृत्यु के बाद, मुझे कतर की एक कंपनी से नौकरी का प्रस्ताव प्राप्त हुआ। ये 2003 की बात है। शायद, मैं तब तैयार नहीं थी। मैंने फिलीपींस में दूसरी नौकरी ले ली क्योंकि विदेश में नौकरी करने का कोई फायदा नहीं था क्योंकि मेरी मां का पहले ही निधन हो चुका था। अब मुझे उतने पैसे कमाने की क्या ज़रुरत थी, हां एक वक्त था जब वह जीवित थी तब मैं काफ़ी अधिक पैसे कमाना चाहती थी ताकि मैं उनका ईलाज करवा सकूं और उन्हें वापस घर ले जा सकूं? पर अब कोई फ़ायदा नहीं रहा था।
फिर 2006 में, कतर के एक बड़े प्रोजेक्ट के साथ एक जर्मन नियोक्ता की ओर से इंटरव्यू के लिए अचानक एक कॉल आया। कतर ने एक बार फिर इशारा किया और हिचकिचाते हुए मैंने अपने पिता की सलाह पर इसका जायज़ा लेने के लिए इंटरव्यू में हिस्सा लिया। मैं नौकरी मिलने की उम्मीद नहीं कर रही थी लेकिन इंटरव्यू की प्रक्रिया के दौरान संकेतों ने मुझे भरोसा दिला दिया कि वह नौकरी वाकई मेरे लिए ही थी। उस इंटरव्यू के बाद, एक महीने के अंदर ही मैं कतर आ गई। मुझे लगा था कि मेरा कतर आना महज ज़्यादा पैसे कमाने के एक अवसर से अधिक कुछ भी नहीं हैं। मगर हैरानी की बात यह है कि इसने मुझे उससे भी अहम चीज़ दी है।
मेरी कैथोलिक आस्था में, यह हमारे दिमाग में डाला गया था कि जीवन का मकसद ईश्वर को जानना, प्यार करना और उनकी सेवा करना है। असल में, जीवन के मायने की खोज करते रहना मनुष्य के स्वभाव में है। जवानी के लौकिक उत्पत्ति की अंतहीन खोज हमारे अस्तित्व के मायने और उद्देश्य के लिए मनुष्य की लालसा में गहराई से निहित है। जब तक मनुष्य को वह नहीं मिल जाता जिसकी वह तलाश कर रहा है, वह कभी नहीं रुकता। इसलिए, वह कभी भी किसी भी चीज़ पर नहीं रुकेगा और अपने धर्म की खोज के लिए समय और स्वास्थ्य किसी भी चीज़ से समझौता नहीं करेगा। लाखों पाठक जिन्होंने "द पर्पस ड्रिवेन लाइफ़" पुस्तक को उसको बेस्टसेलर बनाया है, यह अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि कितने लोग असल में सही दिशा और मकसद की तलाश में हैं।
8 या 9 साल की उम्र में मैंने अपनी मां से पूछा था - "सृष्टि के निर्माण से पहले ईश्वर कहां थे?" मैंने उन्हें बताया कि मैं अपनी आंखें बंद करके और पसीने से लथपथ कुल एकाग्रता के साथ नीचे लिखी बातों पर उनके क्रम अनुसार कल्पना करते हुए समय बिताया करूंगी – मेरी स्थिति और मेरा स्थान, बादल, नीला आकाश, चंद्रमा, नौ ग्रह, इस आकाशगंगा के बाहर की दुनिया वह भी केवल अंतरिक्ष का एक विशाल विस्तार का पता लगाने के लिए। इस स्थान की आयाम और चौड़ाई के साथ, ईश्वर अभी भी इसके ऊपर और श्रेष्ठ है..."जब कुछ भी नहीं था तो वह ईश्वर कहां था?" मैंने फिर से पूछा। और मेरी मां ने अपने चेहरे पर मुस्कान के साथ यह कहा और मुझे गले लगा लिया – "तुम अभी से ही ये सब सोच रही हो?" उन्होंने पूछा। और फिर उन्होंने कहा, "मेरी बच्ची, हमारा ईश्वर इतना महान और अनंत है। वह समझ से परे है लेकिन मेरा विश्वास करो, उन्हें जहां होना चाहिए वहीं है।"
मानव की तड़प और लालसा – जो युवा और वृद्ध दोनों में एक समान है, वह किसी भौतिक चीज के लिए नहीं है, न ही भावनात्मक और शारीरिक सुख के लिए है...यह इन सब से कहीं बिल्कुल ही परे है। हम सभी जन्म से ही ईश्वर की खोज में लगे रहते हैं। हमें ईश्वर को जानने, प्यार करने, और उनकी सेवा करने के लिए बनाया गया है और अब एक मुसलमान होने के नाते, मै एक और चीज़ जोड़ना चाहती हूं – हमें सिर्फ एक ही ईश्वर की पूजा करनी चाहिए।
पूरी ज़िंदगी ईश्वर को तलाश करने के घोर परिश्रम में, मैं इस्लाम के मार्ग पर लाने के लिए ईश्वर प्रशंसा करती हूं।
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