इस्लाम में खुशी (3 का भाग 1): खुशी की अवधारणाएं
विवरण: ख़ुशी प्राप्त करने के साधनों के बारे में मानव विचार का विकास।
- द्वारा Imam Mufti
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 31 Aug 2024
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भले ही खुशी शायद जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चीजों में से एक है, फिर भी विज्ञान इसके बारे में ज्यादा कुछ नहीं बता सकता है। इसकी अवधारणा को ढूंढना मुश्किल है। क्या यह एक विचार, भावना, गुण, दर्शन, आदर्श है, या यह सिर्फ हमारे जीन में होता है? इसकी कोई एक परिभाषा नहीं है, लेकिन आज कल हर कोई खुशी बेच रहा है - ड्रग डीलर, फार्मास्युटिकल कंपनियां, हॉलीवुड, खिलौना कंपनियां, गुरु, और निश्चित रूप से डिज्नी जिसने इस पृथ्वी पर सबसे ज्यादा ख़ुशी प्राप्त करने की एक जगह बनाई है। क्या खुशी सच में खरीदी जा सकती है? क्या ख़ुशी अधिक सुख, प्रसिद्धि और संपत्ति पाने से या आराम भरे जीवन जीने से मिलती है? लेखों की यह श्रृंखला संक्षेप में पश्चिमी विचारों में खुशी के विकास और पश्चिमी देशों में वर्तमान सांस्कृतिक समझ का पता लगाएगी। अंत में, इस्लाम में खुशी का अर्थ और इसको पाने के कुछ साधनों पर चर्चा की जाएगी।
पश्चिमी विचारधारा में खुशी का विकास
ईसाई विचारधार के अनुसार खुशी यीशु की कही गई एक कहावत पर आधारित था,
"... और तुम्हें अभी तो दुख है, परन्तु मैं तुम से फिर मिलूंगा और तुम्हारे मन में आनन्द होगा; और तुम्हारा आनन्द कोई तुम से छीन न सकेगा" (यूहन्ना 16:22)
ईसाई विचारधारा के अनुसार खुशी का विकास सदियों में हुआ था और पाप के धर्मशास्त्र पर आधारित था, जैसा कि सेंट ऑगस्टीन ने द सिटी ऑफ गॉड में बताया था, अदन के बगीचे में आदम और हव्वा के मूल अपराध के कारण हम वर्तमान समय में सच्ची खुशी नहीं पा सकते"।[1]
1776 में थॉमस जेफरसन ने यूरोप और अमेरिका में इस विषय पर चिंतन की और एक सदी का सारांश देते हुए "खुशी की खोज" को एक "सुस्पष्ट" सत्य माना। इस समय तक खुशी की सच्चाई को इतनी बार और इतने आत्मविश्वास से बताया गया था कि कई लोगों को शायद ही किसी सबूत की आवश्यकता थी। जैसा कि जेफरसन ने कहा, यह सुस्पष्ट था। "अधिकांश लोगों के लिए सबसे बड़ी खुशी" को हासिल करना सदी की नैतिक अनिवार्यता बन गई थी। लेकिन सिर्फ "सुस्पष्ट" कैसे खुशी की खोज हो सकती थी? क्या यह वास्तव में इतना स्पष्ट था कि खुशी स्वाभाविक रूप से हमारी इच्छा का अंत था? ईसाइयों ने स्वीकार किया कि मनुष्य ने अपने सांसारिक जीवन के दौरान खुशी पाने की कोशिश की, लेकिन इसके मिलने के बारे में हमेशा संदेह रहा। जेफरसन खुद निराशावादी थे कि क्या इसको पाने की कोशिश कभी संतोषजनक नतीजे पर खत्म होगी। उन्होंने 1763 के एक पत्र में उल्लिखित करते हुए कहा, "पूर्ण खुशी... इस दुनिया में अपने किसी भी प्राणी के लिए देवता द्वारा कभी भी इरादा नहीं था," यहां तक कि "हम में से सबसे भाग्यशाली को अपने जीवन की यात्रा में अक्सर आपदाओं और दुर्भाग्य का सामना करना पड़ता है जो हमें बहुत पीड़ित कर सकता है।[2] इन आपदाओं के खिलाफ "अपने दिमाग को मजबूत" करने के लिए, उन्होंने निष्कर्ष निकाला, "यह हमारे जीवन के प्रमुख अध्ययनों और प्रयासों में से एक होना चाहिए।"
जबकि पांचवी सदी में बोथियस ने यह दावा किया था कि "ईश्वर स्वयं ख़ुशी है,"[3] 19वीं शताब्दी के मध्य तक इसको बदल के "खुशी ही ईश्वर है" कर दिया गया था। सांसारिक ख़ुशी मूर्तियों की पूजा, आधुनिक जीवन का अर्थ, मानव आकांक्षा का स्रोत, अस्तित्व का उद्देश्य, क्यों और क्या कारण है के रूप में उभरी। जैसा कि फ्रायड ने कहा यदि खुशी 'सृष्टि की योजना में नहीं थी, [4] तो कुछ ऐसे लोग थे जो इसे बनाने, इसका उपयोग करने और इसे लोकतंत्र और मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था (भौतिकवाद) के रूप में बेचने के लिए निर्माता के कार्य को बदलने के लिए तैयार थे। जैसा कि दार्शनिक पास्कल ब्रुकनर ने कहा, "खुशी हमारे समकालीन लोकतंत्रों का एकमात्र क्षितिज है।" एक प्रतिनिधि धर्म के रूप में भौतिकवाद ने ईश्वर को शॉपिंग मॉल में स्थानांतरित कर दिया है।
पश्चिमी संस्कृति में खुशी
हमारी संस्कृति में आमतौर पर यह माना जाता है कि खुशी तब मिलती है जब आप अमीर, शक्तिशाली या लोकप्रिय हो जाते हैं। युवा लोकप्रिय पॉप आइडल बनना चाहते हैं, बूढ़े लोग जैकपॉट जीतने का सपना देखते हैं। हम अक्सर सभी तनाव, उदासी और चिड़चिड़ेपन को दूर करके खुशी की तलाश करते हैं। कुछ लोगों को लगता है कि खुशी मूड बदलने वाली चिकित्सा में है। एक इतिहासकार इवा मोस्कोविट्ज़ चिकित्सा को लेकर अमेरिकी लोगों के जुनून के बारे में कुछ बताती हैं: "आज इस जुनून की कोई सीमा नहीं है... अमेरिका में 260 से अधिक (विभिन्न प्रकार के) 12-चरणीय कार्यक्रम हैं।"[5]
ख़ुशी प्राप्त करने में इतनी परेशानी होने का एक कारण यह है कि हमें पता ही नहीं है कि यह क्या है। इसलिए हम जीवन में खराब निर्णय लेते हैं। एक इस्लामी कहानी निर्णय और खुशी के संबंध को दर्शाती है।
"ओह, महान ऋषि, नसरुद्दीन," उत्सुक छात्र ने कहा,
"मुझे आपसे एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न पूछना है,
जिसका उत्तर हम सभी जानना चाहते हैं:
ख़ुशी प्राप्त करने का रहस्य क्या है?"
नसरुद्दीन ने कुछ देर सोचा,
फिर जवाब दिया।
"खुशी पाने का रहस्य अच्छा निर्णय लेना है।"
"आह," छात्र ने कहा।
"लेकिन हम अच्छा निर्णय कैसे लें?
"अनुभव से," नसरुद्दीन ने उत्तर दिया।
"हां," छात्र ने कहा।
"लेकिन हमें अनुभव कैसे मिलेगा?'
"बुरे निर्णय से।"
हमारे अच्छे निर्णय का एक उदाहरण यह जानना है कि भौतिकवादी सुख स्थायी सुख नही है। अपने अच्छे निर्णय से इस निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद हम अपनी सुख-सुविधाओं में पीछे नहीं हटते। हम एक ऐसी खुशी के लिए तरसते रहते हैं जो पहुंच से बाहर लगती है। हम यह सोचकर अधिक पैसा कमाते हैं कि यह खुश रहने का तरीका है, और इस प्रक्रिया में हम अपने परिवार को भूल जाते हैं। हम जिन बड़े अवसरों का सपना देखते हैं उनसे हमें उम्मीद से कम खुशी मिलती है। जितनी ख़ुशी हमने उम्मीद की थी उससे कम ख़ुशी मिलने के अलावा हमें अक्सर यह नहीं पता होता है कि हम क्या चाहते हैं, हमें किससे खुशी मिलेगी या इसे कैसे प्राप्त किया जाए। हम इसे गलत समझ लेते हैं।
स्थायी खुशी "इसे बनाने' से नहीं मिलेगी। कल्पना कीजिए कि किसी ने आपको प्रसिद्धि, भाग्य और आराम दिला दिया, क्या आप खुश होंगे? आप जश्न मनाएंगे लेकिन थोड़े समय के लिए। धीरे-धीरे आप अपनी नई परिस्थितियों के अनुकूल हो जाएंगे और जीवन भावनाओं के अपने सामान्य स्तर पर वापस आ जायेंगे। अध्ययनों से पता चलता है कि बड़ी लॉटरी जीतने वाले लोग कुछ महीनों के बाद औसत व्यक्ति से ज्यादा खुश नहीं रह पाते! ख़ुशी को फिर से पाने के लिए अब उनको और भी अधिक की आवश्यकता होती है।
इस पर भी विचार करें कि हमने इसे कैसे "बनाया"। 1957 में हमारी प्रति व्यक्ति आय आज के डॉलर के हिसाब से 8,000 डॉलर से कम थी। आज यह 16,000 डॉलर है। दोगुनी आय से अब हमारे पास पैसे से खरीदे जाने वाले भौतिक सामान दोगुने हैं - जिसमें प्रति व्यक्ति दो गुना अधिक कारें शामिल हैं। हमारे पास माइक्रोवेव ओवन, रंगीन टीवी, वीसीआर, आंसरिंग मशीन और 12 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष के ब्रांड-नाम वाले एथलेटिक जूते भी हैं।
तो क्या हम ज्यादा खुश हैं? नहीं। 1957 में 35 प्रतिशत अमेरिकियों ने नेशनल ओपिनियन रिसर्च सेंटर को बताया कि वे "बहुत खुश हैं।" 1991 में केवल 31 प्रतिशत लोगों ने ऐसा कहा।[6] इस दौरान अवसाद दर बढ़ गई थी।
ईश्वर के दया के पैगंबर ने कहा:
"सच्ची समृद्धि बहुत अधिक धन होने से नहीं मिलती है, लेकिन आत्मा की समृद्धि सच्ची समृद्धि है।" (सहीह अल बुखारी)
फुटनोट:
[1] सिटी ऑफ गॉड, (XIX.4-10). (http://www.humanities.mq.edu.au/Ockham/y6705.html)
[2] नोट्स फॉर एन ऑटोबायोग्राफी, 1821
[3] डी कंसोल. iii
[4] सिविलाइजेशन एंड इट्स डिस्कन्टेन्ट्स, (1930)
[5] इन थेरेपी वी ट्रस्ट: अमेरिका ओबसेशन विद सेल्फ फुलफिलमेंट
[6] सेंटर फॉर ए न्यू अमेरिकन ड्रीम, 2000 वार्षिक रिपोर्ट (http://www.newdream.org/publications/2000annualreport.pdf)
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