इस्लाम में खुशी (3 का भाग 1): खुशी की अवधारणाएं
विवरण: ख़ुशी प्राप्त करने के साधनों के बारे में मानव विचार का विकास।
- द्वारा Imam Mufti
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 31 Aug 2024
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भले ही खुशी शायद जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चीजों में से एक है, फिर भी विज्ञान इसके बारे में ज्यादा कुछ नहीं बता सकता है। इसकी अवधारणा को ढूंढना मुश्किल है। क्या यह एक विचार, भावना, गुण, दर्शन, आदर्श है, या यह सिर्फ हमारे जीन में होता है? इसकी कोई एक परिभाषा नहीं है, लेकिन आज कल हर कोई खुशी बेच रहा है - ड्रग डीलर, फार्मास्युटिकल कंपनियां, हॉलीवुड, खिलौना कंपनियां, गुरु, और निश्चित रूप से डिज्नी जिसने इस पृथ्वी पर सबसे ज्यादा ख़ुशी प्राप्त करने की एक जगह बनाई है। क्या खुशी सच में खरीदी जा सकती है? क्या ख़ुशी अधिक सुख, प्रसिद्धि और संपत्ति पाने से या आराम भरे जीवन जीने से मिलती है? लेखों की यह श्रृंखला संक्षेप में पश्चिमी विचारों में खुशी के विकास और पश्चिमी देशों में वर्तमान सांस्कृतिक समझ का पता लगाएगी। अंत में, इस्लाम में खुशी का अर्थ और इसको पाने के कुछ साधनों पर चर्चा की जाएगी।
पश्चिमी विचारधारा में खुशी का विकास
ईसाई विचारधार के अनुसार खुशी यीशु की कही गई एक कहावत पर आधारित था,
"... और तुम्हें अभी तो दुख है, परन्तु मैं तुम से फिर मिलूंगा और तुम्हारे मन में आनन्द होगा; और तुम्हारा आनन्द कोई तुम से छीन न सकेगा" (यूहन्ना 16:22)
ईसाई विचारधारा के अनुसार खुशी का विकास सदियों में हुआ था और पाप के धर्मशास्त्र पर आधारित था, जैसा कि सेंट ऑगस्टीन ने द सिटी ऑफ गॉड में बताया था, अदन के बगीचे में आदम और हव्वा के मूल अपराध के कारण हम वर्तमान समय में सच्ची खुशी नहीं पा सकते"।[1]
1776 में थॉमस जेफरसन ने यूरोप और अमेरिका में इस विषय पर चिंतन की और एक सदी का सारांश देते हुए "खुशी की खोज" को एक "सुस्पष्ट" सत्य माना। इस समय तक खुशी की सच्चाई को इतनी बार और इतने आत्मविश्वास से बताया गया था कि कई लोगों को शायद ही किसी सबूत की आवश्यकता थी। जैसा कि जेफरसन ने कहा, यह सुस्पष्ट था। "अधिकांश लोगों के लिए सबसे बड़ी खुशी" को हासिल करना सदी की नैतिक अनिवार्यता बन गई थी। लेकिन सिर्फ "सुस्पष्ट" कैसे खुशी की खोज हो सकती थी? क्या यह वास्तव में इतना स्पष्ट था कि खुशी स्वाभाविक रूप से हमारी इच्छा का अंत था? ईसाइयों ने स्वीकार किया कि मनुष्य ने अपने सांसारिक जीवन के दौरान खुशी पाने की कोशिश की, लेकिन इसके मिलने के बारे में हमेशा संदेह रहा। जेफरसन खुद निराशावादी थे कि क्या इसको पाने की कोशिश कभी संतोषजनक नतीजे पर खत्म होगी। उन्होंने 1763 के एक पत्र में उल्लिखित करते हुए कहा, "पूर्ण खुशी... इस दुनिया में अपने किसी भी प्राणी के लिए देवता द्वारा कभी भी इरादा नहीं था," यहां तक कि "हम में से सबसे भाग्यशाली को अपने जीवन की यात्रा में अक्सर आपदाओं और दुर्भाग्य का सामना करना पड़ता है जो हमें बहुत पीड़ित कर सकता है।[2] इन आपदाओं के खिलाफ "अपने दिमाग को मजबूत" करने के लिए, उन्होंने निष्कर्ष निकाला, "यह हमारे जीवन के प्रमुख अध्ययनों और प्रयासों में से एक होना चाहिए।"
जबकि पांचवी सदी में बोथियस ने यह दावा किया था कि "ईश्वर स्वयं ख़ुशी है,"[3] 19वीं शताब्दी के मध्य तक इसको बदल के "खुशी ही ईश्वर है" कर दिया गया था। सांसारिक ख़ुशी मूर्तियों की पूजा, आधुनिक जीवन का अर्थ, मानव आकांक्षा का स्रोत, अस्तित्व का उद्देश्य, क्यों और क्या कारण है के रूप में उभरी। जैसा कि फ्रायड ने कहा यदि खुशी 'सृष्टि की योजना में नहीं थी, [4] तो कुछ ऐसे लोग थे जो इसे बनाने, इसका उपयोग करने और इसे लोकतंत्र और मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था (भौतिकवाद) के रूप में बेचने के लिए निर्माता के कार्य को बदलने के लिए तैयार थे। जैसा कि दार्शनिक पास्कल ब्रुकनर ने कहा, "खुशी हमारे समकालीन लोकतंत्रों का एकमात्र क्षितिज है।" एक प्रतिनिधि धर्म के रूप में भौतिकवाद ने ईश्वर को शॉपिंग मॉल में स्थानांतरित कर दिया है।
पश्चिमी संस्कृति में खुशी
हमारी संस्कृति में आमतौर पर यह माना जाता है कि खुशी तब मिलती है जब आप अमीर, शक्तिशाली या लोकप्रिय हो जाते हैं। युवा लोकप्रिय पॉप आइडल बनना चाहते हैं, बूढ़े लोग जैकपॉट जीतने का सपना देखते हैं। हम अक्सर सभी तनाव, उदासी और चिड़चिड़ेपन को दूर करके खुशी की तलाश करते हैं। कुछ लोगों को लगता है कि खुशी मूड बदलने वाली चिकित्सा में है। एक इतिहासकार इवा मोस्कोविट्ज़ चिकित्सा को लेकर अमेरिकी लोगों के जुनून के बारे में कुछ बताती हैं: "आज इस जुनून की कोई सीमा नहीं है... अमेरिका में 260 से अधिक (विभिन्न प्रकार के) 12-चरणीय कार्यक्रम हैं।"[5]
ख़ुशी प्राप्त करने में इतनी परेशानी होने का एक कारण यह है कि हमें पता ही नहीं है कि यह क्या है। इसलिए हम जीवन में खराब निर्णय लेते हैं। एक इस्लामी कहानी निर्णय और खुशी के संबंध को दर्शाती है।
"ओह, महान ऋषि, नसरुद्दीन," उत्सुक छात्र ने कहा,
"मुझे आपसे एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न पूछना है,
जिसका उत्तर हम सभी जानना चाहते हैं:
ख़ुशी प्राप्त करने का रहस्य क्या है?"
नसरुद्दीन ने कुछ देर सोचा,
फिर जवाब दिया।
"खुशी पाने का रहस्य अच्छा निर्णय लेना है।"
"आह," छात्र ने कहा।
"लेकिन हम अच्छा निर्णय कैसे लें?
"अनुभव से," नसरुद्दीन ने उत्तर दिया।
"हां," छात्र ने कहा।
"लेकिन हमें अनुभव कैसे मिलेगा?'
"बुरे निर्णय से।"
हमारे अच्छे निर्णय का एक उदाहरण यह जानना है कि भौतिकवादी सुख स्थायी सुख नही है। अपने अच्छे निर्णय से इस निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद हम अपनी सुख-सुविधाओं में पीछे नहीं हटते। हम एक ऐसी खुशी के लिए तरसते रहते हैं जो पहुंच से बाहर लगती है। हम यह सोचकर अधिक पैसा कमाते हैं कि यह खुश रहने का तरीका है, और इस प्रक्रिया में हम अपने परिवार को भूल जाते हैं। हम जिन बड़े अवसरों का सपना देखते हैं उनसे हमें उम्मीद से कम खुशी मिलती है। जितनी ख़ुशी हमने उम्मीद की थी उससे कम ख़ुशी मिलने के अलावा हमें अक्सर यह नहीं पता होता है कि हम क्या चाहते हैं, हमें किससे खुशी मिलेगी या इसे कैसे प्राप्त किया जाए। हम इसे गलत समझ लेते हैं।
स्थायी खुशी "इसे बनाने' से नहीं मिलेगी। कल्पना कीजिए कि किसी ने आपको प्रसिद्धि, भाग्य और आराम दिला दिया, क्या आप खुश होंगे? आप जश्न मनाएंगे लेकिन थोड़े समय के लिए। धीरे-धीरे आप अपनी नई परिस्थितियों के अनुकूल हो जाएंगे और जीवन भावनाओं के अपने सामान्य स्तर पर वापस आ जायेंगे। अध्ययनों से पता चलता है कि बड़ी लॉटरी जीतने वाले लोग कुछ महीनों के बाद औसत व्यक्ति से ज्यादा खुश नहीं रह पाते! ख़ुशी को फिर से पाने के लिए अब उनको और भी अधिक की आवश्यकता होती है।
इस पर भी विचार करें कि हमने इसे कैसे "बनाया"। 1957 में हमारी प्रति व्यक्ति आय आज के डॉलर के हिसाब से 8,000 डॉलर से कम थी। आज यह 16,000 डॉलर है। दोगुनी आय से अब हमारे पास पैसे से खरीदे जाने वाले भौतिक सामान दोगुने हैं - जिसमें प्रति व्यक्ति दो गुना अधिक कारें शामिल हैं। हमारे पास माइक्रोवेव ओवन, रंगीन टीवी, वीसीआर, आंसरिंग मशीन और 12 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष के ब्रांड-नाम वाले एथलेटिक जूते भी हैं।
तो क्या हम ज्यादा खुश हैं? नहीं। 1957 में 35 प्रतिशत अमेरिकियों ने नेशनल ओपिनियन रिसर्च सेंटर को बताया कि वे "बहुत खुश हैं।" 1991 में केवल 31 प्रतिशत लोगों ने ऐसा कहा।[6] इस दौरान अवसाद दर बढ़ गई थी।
ईश्वर के दया के पैगंबर ने कहा:
"सच्ची समृद्धि बहुत अधिक धन होने से नहीं मिलती है, लेकिन आत्मा की समृद्धि सच्ची समृद्धि है।" (सहीह अल बुखारी)
फुटनोट:
[1] सिटी ऑफ गॉड, (XIX.4-10). (http://www.humanities.mq.edu.au/Ockham/y6705.html)
[2] नोट्स फॉर एन ऑटोबायोग्राफी, 1821
[3] डी कंसोल. iii
[4] सिविलाइजेशन एंड इट्स डिस्कन्टेन्ट्स, (1930)
[5] इन थेरेपी वी ट्रस्ट: अमेरिका ओबसेशन विद सेल्फ फुलफिलमेंट
[6] सेंटर फॉर ए न्यू अमेरिकन ड्रीम, 2000 वार्षिक रिपोर्ट (http://www.newdream.org/publications/2000annualreport.pdf)
इस्लाम में खुशी (3 का भाग 2): खुशी और विज्ञान
विवरण: इस्लाम खुशी प्राप्त करने के वैज्ञानिक तरीकों से सहमत है
- द्वारा Aisha Stacey (© 2011 IslamReligion.com)
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
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इस्लाम में खुशी के भाग 1 में हमने पश्चिमी विचारों में खुशी के विकास और पश्चिमी संस्कृति पर इसके प्रभाव पर चर्चा की। भाग 2 में हम खुशी की परिभाषाओं की फिर से चर्चा करेंगे और विज्ञान और खुशी के बीच के संबंध के बारे में बताएंगे और यह बताएंगे कि इस्लाम की शिक्षाएं इससे कैसे संबंधित है।
मरियम वेबस्टर ऑनलाइन डिक्शनरी खुशी को संतोष या एक सुखद और संतोषजनक अनुभव के रूप में परिभाषित करती है। दार्शनिक अक्सर ख़ुशी को जीवन जीने के एक अच्छे तरीके के रूप में परिभाषित करते हैं। खुशी को सलामती की स्थिति के रूप में भी परिभाषित किया गया है, जिसमे संतोष और बहुत अधिक आनंद की भावनाएं शामिल है।
पिछले कुछ वर्षों से मनोवैज्ञानिक और शोधकर्ता दुनिया भर के लोगों का अध्ययन कर रहे हैं ताकि यह पता लगाया जा सके कि वास्तव में हमें खुशी किस चीज़ से मिलती है। क्या यह पैसा, रवैया, संस्कृति, स्मृति, स्वास्थ्य या परोपकार है? नए निष्कर्ष बताते हैं कि कार्यों का खुशी पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। "यस! पत्रिका" में खुश रहने के लिए वैज्ञानिक रूप से सिद्ध रणनीतियों की एक सूची है। आश्चर्य की बात नहीं है कि ये पूरी तरह उस से मेल खाते हैं जैसा ईश्वर और उनके पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) ने हमें बताया है, जो इस्लाम की पूर्णता का संकेत है।
खुशी को बढ़ाने के सात "वैज्ञानिक रूप से" सिद्ध तरीके नीचे दिए गए हैं।
1.तुलना से बचें।
स्टैनफोर्ड मनोवैज्ञानिक सोनजा ल्यूबोमिर्स्की[1], के अनुसार, दूसरों से अपनी तुलना करने के बजाय अपनी व्यक्तिगत उपलब्धि पर ध्यान केंद्रित करने से अधिक संतुष्टि मिलती है। क़ुरआन में ईश्वर कहता है,
"और (ऐ रसूल) जो उनमें से कुछ लोगों को दुनिया की इस ज़रा सी ज़िन्दगी की रौनक़ से निहाल कर दिया है ताकि हम उनको उसमें आज़माएँ तुम अपनी नज़रें उधर न बढ़ाओ और तुम्हारे ईश्वर की रोज़ी इससे कहीं बेहतर और स्थायी है।" (क़ुरआन 20:131)
2.तब भी मुस्कुराएं जब आपका मन न हो।
डायनर और बिस्वास-डायनर [2] कहते हैं, "खुश लोग... संभावनाओं, अवसरों और सफलता को देखते हैं। जब वे भविष्य के बारे में सोचते हैं तो वे आशावादी होते हैं, और जब वे अतीत की समीक्षा करते हैं तो वे अच्छी चीज़ों का आनंद लेते हैं।"
पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) ने कहा, "किसी भी अच्छे काम के लिए थोड़ा भी मत सोचो, भले ही वो अपने भाई का अभिवादन एक हंसमुख मुस्कान के साथ करना हो।" [3]और अपने भाई को देखकर मुस्कुराना आपकी ओर से दिया गया एक दान है।"[4]
पैगंबर मुहम्मद के साथियों में से एक ने कहा, "जिस दिन से मैंने इस्लाम स्वीकार किया है, ईश्वर के दूत मुझसे हमेशा मुस्कुराते हुए चेहरे के साथ मिलते हैं।"[5]दिवंगत इस्लामी विद्वान शेख इब्न बाज (अल्लाह उन पर दया करे) ने कहा, " एक मुस्कुराता हुआ चेहरा एक अच्छे गुण का संकेत है और अच्छे परिणाम देता है - इससे यह संकेत मिलता है कि दिल में द्वेष नहीं है और इससे लोगों के बीच स्नेह बढ़ता है"।
3.बाहर निकलें और व्यायाम करें।
ड्यूक यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन से पता चलता है कि व्यायाम अवसाद के इलाज में दवाओं की तरह ही प्रभावी हो सकता है। पैगंबर मुहम्मद ने कहा: "एक कमजोर आस्तिक की तुलना में एक मजबूत आस्तिक ईश्वर की दृष्टि में बेहतर और अधिक प्रिय है।"[6]वह केवल विश्वास और चरित्र के संदर्भ में बात नहीं कर रहे थे, बल्कि एक आस्तिक में अच्छे स्वास्थ्य और सेहत के लक्षण भी होने चाहिए।
4.मूल्यवान दोस्त और परिवार बनाओ।
डायनर और बिस्वास-डायनर कहते हैं कि खुश लोगों के परिवार, दोस्त और सहयोगी अच्छे होते हैं। [7] "हमें सिर्फ रिश्ते नहीं बल्कि अच्छे रिश्ते की जरुरत होती है जो हमें समझ सके और हमारी देखभाल कर सके। महान ईश्वर कहते हैं:
"और ईश्वर ही की पूजा करो और उसमे किसी को शामिल न करो और माता-पिता, सगे संबंधी, अनाथों, गरीबों, नजदीक के पड़ोसियों और अजनबी पड़ोसियों, अपने साथियो जो आपके साथ हैं, अपने साथ के यात्रियों और अपने नौकरों के साथ अच्छा व्यव्हार करो। निश्चय ही ईश्वर घमंडियो और दिखावा करने वालों को पसन्द नहीं करता। (क़ुरआन 4:36)
पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "इस जीवन में एक आस्तिक के लिए खुशी लाने वाली चीजों में एक अच्छा पड़ोसी, एक विशाल घर और एक अच्छा घोड़ा है।"[8]इस्लाम परिवारों, पड़ोसियों और समुदायों की एकजुटता पर बहुत जोर देता है।
5.पुरे दिल से धन्यवाद कहो।
लेखक रॉबर्ट एम्मन्स [9] के अनुसार जो लोग साप्ताहिक आधार पर कृतज्ञता दिखाते हैं वे स्वस्थ, अधिक आशावादी और व्यक्तिगत लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में प्रगति करने की अधिक संभावना रखते हैं।.
इस्लाम की मूल शिक्षाओं के अनुसार खुश रहने या संतुष्ट होने के लिए हमें ईश्वर का आभारी होना चाहिए, सिर्फ उसके लिए नहीं जिसे हम आशीर्वाद मानते हैं बल्कि सभी परिस्थितियों के लिए। हम जो भी स्थिति में रहें, हमें आभारी और सुनिश्चित रहना चाहिए कि जब तक हम ईश्वर की शिक्षाओं का पालन कर रहे हैं यह हमारे लिए अच्छा है। ईश्वर ने कहा:
"इसलिए तुम मुझे (ईश्वर) याद रखो और मैं तुम्हें याद रखूंगा, और मेरे प्रति आभारी रहो (मेरे अनगिनत एहसानों के लिए) और कभी भी नाशुक्री न करो।" (क़ुरआन 2:152)
"और याद करो जब ईश्वर ने घोषणा की: 'यदि आप आभारी हैं तो मैं आपको और अधिक दूंगा; परन्तु यदि तुम सच में नाशुक्री करोगे तो मेरा दण्ड बड़ा कठोर है।" (क़ुरआन 14:7)
6.दान करो, अभी दान करो!
परोपकार और दान को अपने जीवन का हिस्सा बना लो और इसके प्रति दृढ़ रहो। शोधकर्ता स्टीफन पोस्ट का कहना है कि किसी पड़ोसी की स्वेच्छा से मदद करना या वस्तुओं और सेवाओं को दान करने से अच्छी सेहत होती है और आपको व्यायाम या धूम्रपान छोड़ने की तुलना में अधिक स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं।
इस्लाम लोगों को परिवार, दोस्तों, पड़ोसियों, अजनबियों और यहां तक कि दुश्मनों के प्रति उदार होने के लिए प्रोत्साहित करता है। क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद की प्रामाणिक परंपराओं में इसका बार-बार उल्लेख किया गया है।
"आप कह दें: मेरा ईश्वर जिसके लिए चाहता है जीविका को बढ़ाता और कम करता है, जो भी तुम दान करोगे वह उसका पूरा बदला देगा और वही उत्तम जीविका देने वाला है।" (क़ुरआन 34:39)
लोग पैगम्बर मुहम्मद के पास गए और पूछा, "अगर किसी के पास देने के लिए कुछ नहीं है, तो वह क्या करे?" उन्होंने कहा, "उसे अपने हाथों से काम करना चाहिए और खुद के लिए कमाना चाहिए और जो वह कमाता है उसमें से दान भी देना चाहिए।" लोगों ने आगे पूछा, "यदि वह यह भी नहीं कर पाए तो?" उन्होनें उत्तर दिया, "उसे जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए जो मदद के लिए पुकारते हैं।" तब लोगों ने पूछा, "यदि वो यह भी न कर पाए तो?" उन्होंने उत्तर दिया, "फिर उसे अच्छे कर्म करने चाहिए और बुरे कर्मों से दूर रहना चाहिए और यह एक धर्मार्थ का कार्य माना जाएगा।"[10]
7.धन को अपनी प्राथमिकताओं की सूची में सबसे नीचे रखें।
शोधकर्ता टिम कैसर और रिचर्ड रयान के अनुसार, जो लोग अपनी प्राथमिकता की सूची में पैसा सबसे ऊपर रखते हैं उन्हें अवसाद, चिंता और कम आत्मसम्मान का खतरा अधिक होता है। ईश्वर के दूत ने कहा, "खुश रहो, और उसकी आशा करो जो तुम्हें प्रसन्न रखे। ईश्वर की कसम, मैं नहीं डरता कि तुम गरीब हो जाओगे, लेकिन मुझे डर है कि तुम्हें सांसारिक धन दिया जाएगा जैसा कि तुमसे पहले के लोगों को दिया गया था। इस प्रकार तुम उसके लिये आपस में होड़ करोगे, जैसा उन्होंने किया था, और यह तुम्हें भी नष्ट कर देगा जैसे उनको किया था।"[11]
खुशी केवल अत्यधिक आनंद नहीं है, इसमें संतोष भी शामिल है। अगले लेख में हम इस्लाम में खुशी की भूमिका की जांच करेंगे और देखेंगे कि ईश्वर की आज्ञाओं का पालन करना धार्मिकता, संतोष और खुशी का मार्ग है।
फुटनोट:
[1] द हाउ ऑफ हैप्पीनेस: ए साइंटिफिक अप्रोच टू गेटिंग द लाइफ यू वांट, सोनजा ल्यूबोमिर्स्की, पेंगुइन प्रेस, 2008
[2] हैप्पीनेस: अनलॉकिंग द मिस्ट्रीज ऑफ साइकोलॉजिकल वेल्थ, एड डायनर और रॉबर्ट बिस्वास-डायनर, ब्लैकवेल पब्लिशिंग लिमिटेड, 2008
[3]सहीह मुस्लिम
[4]सहीह अल-बुखारी
[5]सहीह अल-बुखारी
[6]सहीह मुस्लिम
[7] हैप्पीनेस: अनलॉकिंग द मिस्ट्रीज़ ऑफ़ साइकोलॉजिकल वेल्थ, एड डायनर और रॉबर्ट बिस्वास-डायनर, ब्लैकवेल पब्लिशिंग लिमिटेड, 2008
[8] सही इस्नाद बयाल-हकीम के साथ रिपोर्ट किया गया।
[9] थैंक्स! हाउ द न्यू साइंस ऑफ़ ग्रैटिटूड कैन मेक यू हैप्पीयर, रॉबर्ट एम्मन्स, ह्यूटन मिफ्लिन कंपनी, 2007
[10]सहीह अल-बुखारी
[11] इबिड।
इस्लाम में खुशी (3 का भाग 3): आराधना में सच्ची खुशी मिलती है
विवरण: ईश्वर के सभी आदेश खुश रहने के लिए बनाये गए हैं।
- द्वारा Aisha Stacey (© 2011 IslamReligion.com)
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भाग 1 में हमने पश्चिमी विचारों में खुशी के विकास और पश्चिमी संस्कृति पर इसके प्रभाव पर चर्चा की। भाग 2 में हमने खुशी की परिभाषाओं की फिर से जांच की और विज्ञान और खुशी के बीच के संबंध को समझने की कोशिश की। अब भाग 3 में हम इस्लाम की शिक्षाओं में खुशी के बारे में जानेंगे।
इस्लाम वह धर्म है जो एक धर्म से बढ़कर है; इस धर्म में जीवन जीने का एक संपूर्ण तरीका है। इस्लाम की शिक्षाओं में कुछ भी बहुत छोटा या बहुत बड़ा नहीं है, सब कुछ शामिल है। आनंद लो और खुश रहो, सकारात्मक रहो और शांति से रहो।[1]क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) की प्रामाणिक शिक्षाओं के माध्यम से इस्लाम हमें यही सिखाता है। ईश्वर के हर एक आदेश का उद्देश्य व्यक्ति को खुशी देना है। यह जीवन, पूजा, अर्थशास्त्र और समाज के सभी पहलुओं पर लागू होता है।
"जो कोई अच्छा कर्म करेगा - चाहे वह पुरुष हो या महिला - और वह एक सच्चा आस्तिक होगा तो हम उसे एक अच्छा जीवन देंगे (इस दुनिया में सम्मान, संतोष और वैध जीविका के साथ), और हम निश्चित ही उन्हें उनका पारिश्रमिक (यानी परलोक में स्वर्ग) उनके उत्तम कर्मों के अनुसार देंगे।” (क़ुरआन 16:97)
जैसा कि हम में से अधिकांश ने महसूस किया होगा कि खुशी वह स्वर्गीय गुण है जिससे संतोष और शांति मिलती है, यह वो कोमल आनंद है जिससे हमारे होंठ, चेहरे और दिल मुस्कुराते हैं। यह ईश्वर में विश्वास और उसकी आज्ञाकारिता से निर्धारित होता है। इस प्रकार खुशी शांति, सुरक्षा और समर्पण का प्रतीक है जो इस्लाम है। इस्लाम के आदेश और नियम ईश्वर को जानने से मिलने वाली खुशी को सुदृढ़ करते हैं और वे इस दुनिया में जीवन के दौरान मनुष्य को ख़ुशी देते हैं। हालांकि, इस्लाम इस बात पर भी जोर देता है कि यह दुनिया का जीवन परलोक को प्राप्त करने के साधन से ज्यादा कुछ नहीं है। इस्लाम के दिशा-निर्देशों का पालन करके आप खुश रह सकते हैं और कभी न खत्म होने वाली ख़ुशी की प्रतीक्षा कर सकते हैं।
कभी-कभी ख़ुशी पाने के लिए लोग जटिल रास्तों पर चलने का प्रयास करते हैं; वे इस्लाम के आसान रास्ते को नहीं देख पाते हैं। ख़ुशी उस संतुष्टि में मिल सकती है जो सत्य के मार्ग पर चलने से आती है। यह सच्ची पूजा, पुण्य, नेक और सुंदर कर्म करने में जल्दबाजी, और दयालुता के कार्य करने या दान देने से मिल सकता है। इन सभी चीज़ों से हम हर दिन, किसी भी परिस्थिति में खुश रह सकते हैं। ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए किया गया छोटा-मोटा दान भी आपके चेहरे पर मुस्कान और आपके दिल में खुशी की भावना ला सकता है।
"और वह लोग जो अपने धन को ईश्वर की खुशी के लिए खर्च करते हैं और वे निश्चित होते हैं कि ईश्वर उन्हें इसके बदले इनाम देगा, वो ऊंचाई पर स्थित उस बगीचे के समान है जिस पर भारी वर्षा होती है और यह अपनी फसल की उपज को दोगुना कर देता है। और अगर भारी बारिश न भी हो तो हल्की बारिश ही इसके लिए काफी है।” (क़ुरआन 2:265)
पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "वास्तव में एक विश्वास करने वाले की बातें आश्चर्यजनक हैं! ये सभी उसके फायदे के लिए हैं। अगर उसे जीवन में आसानी दी जाती है तो वह आभारी होता है, और यह उसके लिए अच्छा है। और यदि उसे कष्ट दिया जाता है, तो वह दृढ़ रहता है, और यह उसके लिए अच्छा है।"[2] मानव स्थिति की प्रकृति का अर्थ है कि सुख के बीच बड़ा दुख हो सकता है और दर्द और निराशा के भीतर बड़ा आनंद हो सकता है। एक आस्तिक अपने लिए ईश्वर के आदेश को स्वीकार करता है और पूर्ण निराशा या असहनीय पीड़ा से मुक्त होकर एक सुखी जीवन व्यतीत करता है।
इस्लाम के पास उन सभी समस्याओं का हल है जो मानवजाति को पीड़ा देती हैं, और इसे जानने के बाद खुशी मिलती है, क्योंकि यह हमें आत्म-संतुष्टि और संपत्ति प्राप्त करने की आवश्यकता से ऊपर देखने में मदद करती है। इस्लाम की शिक्षाओं का पालन करने और ईश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास करने से हमें हमेशा याद रहता है कि यह जीवन परलोक के जीवन को पाने के मार्ग पर एक क्षणिक विराम है।
"लेकिन जो कोई मेरी याद से मुंह मोड़ेगा (अर्थात न तो क़ुरआन पर विश्वास करेगा और न इसकी शिक्षाओं के अनुसार काम करेगा) वास्तव में उसका जीवन कठिन होगा, और हम उसे क़यामत के दिन अन्धा कर देंगे।" (क़ुरआन 20:124)
क़ुरआन में ईश्वर कहता है, "वास्तव में! मैं अल्लाह हूं! मेरे सिवा कोई भी पूजा के लायक नही है, इसलिए सिर्फ मेरी पूजा करो" (क़ुरआन 20:14)। खुशी की कुंजी ईश्वर को जानना और उनकी पूजा करना है। जब कोई व्यक्ति इस तरह ईश्वर की पूजा और उसको याद करता है जैसा उसे करना चाहिए, तो हमारे चारों ओर हर समय और यहां तक कि सबसे अंधेरी रात में भी खुशी देखी जा सकती है। यह एक बच्चे की मुस्कान में, हाथ के स्पर्श में, सूखी धरती पर बारिश में, या वसंत की गंध में होती है। ये चीजें हमारे दिलों को सचमुच खुश कर सकती हैं क्योंकि ये ईश्वर की दया और प्रेम की अभिव्यक्ति हैं। आराधना में ख़ुशी मिल सकती है।
सच्ची खुशी पाने के लिए हमें ईश्वर को जानना चाहिए, खासकर उनके नाम और गुणों के माध्यम से। हितकारी ज्ञान की तलाश करने से खुशी मिलती है। फ़रिश्ते अपने पंख फड़फड़ाते हैं और जो ज्ञान की खोज में रहता है उसका रिकॉर्ड रखते हैं; सिर्फ यह सोचने से ही एक आस्तिक के चेहरे पर खुशी की मुस्कान आती है। हमारे धार्मिक पूर्वजों ने पाया कि ईश्वर के करीब रहने के प्रयास से निहित खुशी और आनंद मिलता है।
उत्कृष्ट इस्लामी विद्वान इब्न तैमियाह (ईश्वर उन पर दया करें) ने एक बार कहा था, "मैं एक बार बीमार हो गया था और चिकित्सक ने मुझसे कहा था कि पढ़ने और ज्ञान पर बातचीत करने से मेरी हालत और खराब हो सकती है। मैंने उनसे कहा कि मैं इन कामों को नहीं छोड़ सकता। मैंने उनसे पूछा कि क्या अगर आत्मा खुश और आनंदित महसूस करे तो शरीर मजबूत होता है और बीमारी दूर हो जाती है। उन्होंने हां में जवाब दिया, तो मैंने कहा कि मेरी आत्मा को ज्ञान में खुशी, आराम और ताकत मिलती है।"
हमें पूरी खुशी तभी मिलेगी जब हम स्वर्ग में कभी न खत्म होने वाली ज़िंदगी जियेंगे। हमें सिर्फ वहीं पूर्ण शांति, संतुष्टि और सुरक्षा मिल पाएगी। हम सिर्फ वहीं उस भय, चिंता और दर्द से मुक्त होंगे जो मानवीय जीवन का हिस्सा है। हालांकि इस्लाम के दिशा-निर्देश हम मनुष्यों को इस दुनिया में खुशी की तलाश करने में मदद करते हैं। ईश्वर को प्रसन्न करने की कोशिश करना और सिर्फ उनकी ही आराधना करना इस संसार में और परलोक में खुश रहने की कुंजी है।
और उनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो कहते हैं: “ऐ हमारे ईश्वर! हमें इस दुनिया में जो अच्छा है वो दे और परलोक में जो अच्छा है वो दे, और हमें आग की पीड़ा से बचा! ” (क़ुरआन 2:201)
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