इस्लाम में खुशी (3 का भाग 3): आराधना में सच्ची खुशी मिलती है
विवरण: ईश्वर के सभी आदेश खुश रहने के लिए बनाये गए हैं।
- द्वारा Aisha Stacey (© 2011 IslamReligion.com)
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
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भाग 1 में हमने पश्चिमी विचारों में खुशी के विकास और पश्चिमी संस्कृति पर इसके प्रभाव पर चर्चा की। भाग 2 में हमने खुशी की परिभाषाओं की फिर से जांच की और विज्ञान और खुशी के बीच के संबंध को समझने की कोशिश की। अब भाग 3 में हम इस्लाम की शिक्षाओं में खुशी के बारे में जानेंगे।
इस्लाम वह धर्म है जो एक धर्म से बढ़कर है; इस धर्म में जीवन जीने का एक संपूर्ण तरीका है। इस्लाम की शिक्षाओं में कुछ भी बहुत छोटा या बहुत बड़ा नहीं है, सब कुछ शामिल है। आनंद लो और खुश रहो, सकारात्मक रहो और शांति से रहो।[1]क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) की प्रामाणिक शिक्षाओं के माध्यम से इस्लाम हमें यही सिखाता है। ईश्वर के हर एक आदेश का उद्देश्य व्यक्ति को खुशी देना है। यह जीवन, पूजा, अर्थशास्त्र और समाज के सभी पहलुओं पर लागू होता है।
"जो कोई अच्छा कर्म करेगा - चाहे वह पुरुष हो या महिला - और वह एक सच्चा आस्तिक होगा तो हम उसे एक अच्छा जीवन देंगे (इस दुनिया में सम्मान, संतोष और वैध जीविका के साथ), और हम निश्चित ही उन्हें उनका पारिश्रमिक (यानी परलोक में स्वर्ग) उनके उत्तम कर्मों के अनुसार देंगे।” (क़ुरआन 16:97)
जैसा कि हम में से अधिकांश ने महसूस किया होगा कि खुशी वह स्वर्गीय गुण है जिससे संतोष और शांति मिलती है, यह वो कोमल आनंद है जिससे हमारे होंठ, चेहरे और दिल मुस्कुराते हैं। यह ईश्वर में विश्वास और उसकी आज्ञाकारिता से निर्धारित होता है। इस प्रकार खुशी शांति, सुरक्षा और समर्पण का प्रतीक है जो इस्लाम है। इस्लाम के आदेश और नियम ईश्वर को जानने से मिलने वाली खुशी को सुदृढ़ करते हैं और वे इस दुनिया में जीवन के दौरान मनुष्य को ख़ुशी देते हैं। हालांकि, इस्लाम इस बात पर भी जोर देता है कि यह दुनिया का जीवन परलोक को प्राप्त करने के साधन से ज्यादा कुछ नहीं है। इस्लाम के दिशा-निर्देशों का पालन करके आप खुश रह सकते हैं और कभी न खत्म होने वाली ख़ुशी की प्रतीक्षा कर सकते हैं।
कभी-कभी ख़ुशी पाने के लिए लोग जटिल रास्तों पर चलने का प्रयास करते हैं; वे इस्लाम के आसान रास्ते को नहीं देख पाते हैं। ख़ुशी उस संतुष्टि में मिल सकती है जो सत्य के मार्ग पर चलने से आती है। यह सच्ची पूजा, पुण्य, नेक और सुंदर कर्म करने में जल्दबाजी, और दयालुता के कार्य करने या दान देने से मिल सकता है। इन सभी चीज़ों से हम हर दिन, किसी भी परिस्थिति में खुश रह सकते हैं। ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए किया गया छोटा-मोटा दान भी आपके चेहरे पर मुस्कान और आपके दिल में खुशी की भावना ला सकता है।
"और वह लोग जो अपने धन को ईश्वर की खुशी के लिए खर्च करते हैं और वे निश्चित होते हैं कि ईश्वर उन्हें इसके बदले इनाम देगा, वो ऊंचाई पर स्थित उस बगीचे के समान है जिस पर भारी वर्षा होती है और यह अपनी फसल की उपज को दोगुना कर देता है। और अगर भारी बारिश न भी हो तो हल्की बारिश ही इसके लिए काफी है।” (क़ुरआन 2:265)
पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "वास्तव में एक विश्वास करने वाले की बातें आश्चर्यजनक हैं! ये सभी उसके फायदे के लिए हैं। अगर उसे जीवन में आसानी दी जाती है तो वह आभारी होता है, और यह उसके लिए अच्छा है। और यदि उसे कष्ट दिया जाता है, तो वह दृढ़ रहता है, और यह उसके लिए अच्छा है।"[2] मानव स्थिति की प्रकृति का अर्थ है कि सुख के बीच बड़ा दुख हो सकता है और दर्द और निराशा के भीतर बड़ा आनंद हो सकता है। एक आस्तिक अपने लिए ईश्वर के आदेश को स्वीकार करता है और पूर्ण निराशा या असहनीय पीड़ा से मुक्त होकर एक सुखी जीवन व्यतीत करता है।
इस्लाम के पास उन सभी समस्याओं का हल है जो मानवजाति को पीड़ा देती हैं, और इसे जानने के बाद खुशी मिलती है, क्योंकि यह हमें आत्म-संतुष्टि और संपत्ति प्राप्त करने की आवश्यकता से ऊपर देखने में मदद करती है। इस्लाम की शिक्षाओं का पालन करने और ईश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास करने से हमें हमेशा याद रहता है कि यह जीवन परलोक के जीवन को पाने के मार्ग पर एक क्षणिक विराम है।
"लेकिन जो कोई मेरी याद से मुंह मोड़ेगा (अर्थात न तो क़ुरआन पर विश्वास करेगा और न इसकी शिक्षाओं के अनुसार काम करेगा) वास्तव में उसका जीवन कठिन होगा, और हम उसे क़यामत के दिन अन्धा कर देंगे।" (क़ुरआन 20:124)
क़ुरआन में ईश्वर कहता है, "वास्तव में! मैं अल्लाह हूं! मेरे सिवा कोई भी पूजा के लायक नही है, इसलिए सिर्फ मेरी पूजा करो" (क़ुरआन 20:14)। खुशी की कुंजी ईश्वर को जानना और उनकी पूजा करना है। जब कोई व्यक्ति इस तरह ईश्वर की पूजा और उसको याद करता है जैसा उसे करना चाहिए, तो हमारे चारों ओर हर समय और यहां तक कि सबसे अंधेरी रात में भी खुशी देखी जा सकती है। यह एक बच्चे की मुस्कान में, हाथ के स्पर्श में, सूखी धरती पर बारिश में, या वसंत की गंध में होती है। ये चीजें हमारे दिलों को सचमुच खुश कर सकती हैं क्योंकि ये ईश्वर की दया और प्रेम की अभिव्यक्ति हैं। आराधना में ख़ुशी मिल सकती है।
सच्ची खुशी पाने के लिए हमें ईश्वर को जानना चाहिए, खासकर उनके नाम और गुणों के माध्यम से। हितकारी ज्ञान की तलाश करने से खुशी मिलती है। फ़रिश्ते अपने पंख फड़फड़ाते हैं और जो ज्ञान की खोज में रहता है उसका रिकॉर्ड रखते हैं; सिर्फ यह सोचने से ही एक आस्तिक के चेहरे पर खुशी की मुस्कान आती है। हमारे धार्मिक पूर्वजों ने पाया कि ईश्वर के करीब रहने के प्रयास से निहित खुशी और आनंद मिलता है।
उत्कृष्ट इस्लामी विद्वान इब्न तैमियाह (ईश्वर उन पर दया करें) ने एक बार कहा था, "मैं एक बार बीमार हो गया था और चिकित्सक ने मुझसे कहा था कि पढ़ने और ज्ञान पर बातचीत करने से मेरी हालत और खराब हो सकती है। मैंने उनसे कहा कि मैं इन कामों को नहीं छोड़ सकता। मैंने उनसे पूछा कि क्या अगर आत्मा खुश और आनंदित महसूस करे तो शरीर मजबूत होता है और बीमारी दूर हो जाती है। उन्होंने हां में जवाब दिया, तो मैंने कहा कि मेरी आत्मा को ज्ञान में खुशी, आराम और ताकत मिलती है।"
हमें पूरी खुशी तभी मिलेगी जब हम स्वर्ग में कभी न खत्म होने वाली ज़िंदगी जियेंगे। हमें सिर्फ वहीं पूर्ण शांति, संतुष्टि और सुरक्षा मिल पाएगी। हम सिर्फ वहीं उस भय, चिंता और दर्द से मुक्त होंगे जो मानवीय जीवन का हिस्सा है। हालांकि इस्लाम के दिशा-निर्देश हम मनुष्यों को इस दुनिया में खुशी की तलाश करने में मदद करते हैं। ईश्वर को प्रसन्न करने की कोशिश करना और सिर्फ उनकी ही आराधना करना इस संसार में और परलोक में खुश रहने की कुंजी है।
और उनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो कहते हैं: “ऐ हमारे ईश्वर! हमें इस दुनिया में जो अच्छा है वो दे और परलोक में जो अच्छा है वो दे, और हमें आग की पीड़ा से बचा! ” (क़ुरआन 2:201)
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