क्या हम अकेले हैं? (3 का भाग 1): जिन्न की दुनिया

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Are_We_Alone_(part_1_of_3)._001.jpgपूरे इतिहास में मानवजाति अलौकिकता की ओर आकर्षित हुई है। आत्माओं, भूतों और कई अन्य अजीब जीवों ने हमारे दिमाग में जगह बना ली है और हमारी कल्पनाओं पर कब्जा कर लिया है। अजीब और भ्रामक दिखने वाले जीवों की वजह से कई बार लोग शिर्क [1] कर बैठते हैं जो पापों में सबसे बड़ा पाप है। तो क्या ये आत्माएं सच मे होती हैं? क्या ये हमारी कल्पना मात्र से अधिक हैं, या धुएं और भ्रम से बनी हुई छायाएं हैं? खैर, मुसलमानों के अनुसार ये सच मे होती हैं। आत्माएं, भूत, बंशी (आयरिश किंवदंती में एक महिला आत्मा), पोल्टरजिस्ट और प्रेत सभी को समझाया जा सकता है यदि कोई आत्माओं की इस्लामी अवधारणा - जिन्न की दुनिया - को समझ लेता है।

जिन्न, यह एक ऐसा शब्द है जो अंग्रेजी बोलने वालों के लिए पूरी तरह से अनसुना नही है। जिन्न और जिनी के बीच समानता पर ध्यान दें। टीवी और फिल्मों ने जिनी को मानवजाति की सभी इच्छाओं को पूरा करने वाले चंचल प्राणी के रूप में दिखाया है। टेलीविजन श्रृंखला "आई ड्रीम ऑफ जिनी" में जिनी एक युवा महिला थी जो हमेशा चंचल शरारत करती थी, और डिज्नी की एनिमेटेड फिल्म "अलादीन" में जिनी को प्यारा काल्पनिक पात्र दिखाया गया था। इसके बावजूद जिन्न एक हानिरहित परी कथा का हिस्सा नहीं हैं; वे सच मे हैं और मानवजाति के लिए सच मे बहुत खतरा पैदा कर सकते हैं।

हालांकि, ईश्वर जो सबसे बुद्धिमान है, उसने हमें असहाय नही छोड़ा है। ईश्वर ने जिन्न के स्वभाव को बहुत स्पष्ट रूप से समझाया है। हम जिन्नों के तरीकों और उद्देश्यों को जानते हैं क्योंकि ईश्वर ने क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) की परंपराओं में इसके बारे में बताया है। ईश्वर ने हमें अपनी रक्षा के लिए "हथियार" और उसके अनुनय का विरोध करने के लिए साधन दिए हैं। हालांकि, सबसे पहले हमें यह जानना होगा कि वास्तव में जिन्न क्या हैं।

अरबी शब्द जिन्न, क्रिया 'जन्ना' से बना है और इसका अर्थ है छिपाना या गुप्त रखना। ये जिन्न इसलिए कहलाते हैं क्योंकि ये लोगों की नज़रों से खुद को छुपाते हैं। शब्द जनीन (भ्रूण) और मिजन (ढाल) एक ही मूल के हैं। [2] जैसा कि नाम से पता चलता है, जिन्न आम तौर पर इंसानों के लिए अदृश्य होते हैं। जिन्न ईश्वर की रचना का हिस्सा हैं। ये आदम और मानवजाति के निर्माण से पहले आग से पैदा किये गए थे।

और हमने मनुष्य को सड़े हुए कीचड़ के सूखे गारे से बनाया। और उससे पहले जिन्नों को हमने अग्नि की ज्वाला से पैदा किया। (क़ुरआन 15:26-27)

पैगंबर मुहम्मद की परंपराओं के अनुसार स्वर्गदूतों को प्रकाश से, जिन्न को आग से और मानवजाति को "जैसा ऊपर बताया गया है" (अर्थात् मिट्टी) से पैदा किया गया था।[3] ईश्वर ने स्वर्गदूतों, जिन्न और मानवजाति को सिर्फ अपनी पूजा करने के लिए पैदा किया है।

"मैंने जिन्नो और मनुष्यो को सिर्फ अपनी पूजा करने के लिए पैदा किया है।" (क़ुरआन 51:56)

जिन्न हमारी दुनिया में मौजूद हैं लेकिन वे हमसे अलग रहते हैं। जिन्नो की अपनी अलग प्रकृति और विशेषताएं हैं और वे आम तौर पर मानवजाति से छुप के रहते हैं। जिन्नो और मनुष्यों में कुछ सामान्य लक्षण होते हैं, जिसमे सबसे महत्वपूर्ण है स्वतंत्र इच्छा और इसकी वजह से इनमें अच्छे और बुरे, सही और गलत को चुनने की क्षमता है। जिन्न खाते-पीते हैं, शादी करते हैं, बच्चे पैदा करते हैं और मर जाते हैं।

"और निश्चित रूप से हमने बहुत से जिन्न और मानव को नरक के लिए पैदा किया है। इनके पास दिल है, जिससे ये सोच-विचार नहीं करते, इनकी आंखे हैं जिससे देखते नही हैं और कान है जिससे सुनते नही है।" (क़ुरआन 7:179)

इस्लामी विद्वान इब्न अब्द अल-बर्र ने कहा कि जिन्नो के कई नाम हैं और ये कई प्रकार के होते हैं। सामान्य तौर पर इन सब को जिन्न कहा जाता है; एक जिन्न जो लोगों के बीच रहता है (एक शिकारी या निवासी) आमिर कहलाता है, और वो जिन्न जो खुद को एक बच्चे से जोड़ता है अरवाह कहलाता है। एक दुष्ट जिन्न जिसे अक्सर शैतान कहा जाता है, जब ये दुष्ट और राक्षसी से आगे बढ़ जाते हैं, तो इन्हें मारिद कहा जाता है, और सबसे दुष्ट और ताकतवर जिन्न को इफ़्रीत (बहुवचन अफ़ारीत) कहा जाता है। [4] पैगंबर मुहम्मद की परंपराओं में जिन्न को तीन वर्गों में बांटा गया है; एक जिनके पंख हैं और वे हवा में उड़ते हैं, दूसरा जो सांप और कुत्तों के जैसे होते हैं, और तीसरा जो अंतहीन यात्रा करते हैं। [5]

जिन्न में ऐसे भी होते हैं जो ईश्वर और ईश्वर के सभी पैगंबरो के संदेश पर विश्वास करते हैं और ऐसे भी हैं जो नहीं करते हैं। ऐसे भी हैं जिन्होंने अपने बुरे कर्मों को छोड़ दिया और सच्चे विश्वासी, आस्था वाले और धैर्यवान बन गए।

"(ऐ मुहम्मद) कह दो: यह मुझे बताया गया है कि जिन्न के एक समूह ने सुना और कहा; 'वास्तव में हमने एक अद्भुत क़ुरआन सुना है। यह दिखाता है सीधी राह इसलिए हमने इस पर विश्वास किया, और हम अपने ईश्वर के साथ कभी किसी को भागीदार नहीं बनाएंगे।” (क़ुरआन 72:1-2)

जिन्न ईश्वर के प्रति जवाबदेह हैं और उनकी आज्ञाओं और निषेधों के अधीन हैं। उनसे हिसाब लिया जाएगा और या तो वे स्वर्ग या नर्क में डाले जायेंगे। फिर से जिंदा होने वाले दिन मानवजाति के साथ जिन्न भी मौजूद होंगे और ईश्वर उन दोनों को संबोधित करेगा।

"हे जिन्नों तथा मनुष्यों के समुदाय! क्या तुम्हारे पास तुम्हीं में से ऐसे पैगंबर नहीं आये जो तुम्हें मेरी छंद सुनाते और तुम्हें इस दिन से सावधान करते? वे कहेंगेः हम स्वयं अपने ही विरुध्द गवाह हैं।” (क़ुरआन 6:130)

अब तक हमने सीखा है कि अलौकिक प्राणी होते हैं। हम अकेले नहीं हैं। वे ऐसे जीव हैं जो हमारे साथ रहते हैं, फिर भी हमसे अलग हैं। उनका अस्तित्व कई अजीब और परेशान करने वाली घटनाओं का स्पष्टीकरण है। हम जानते हैं कि जिन्न अच्छे और बुरे दोनों होते हैं, हालांकि शरारत करने वालो और बुरे काम करने वालो की संख्या विश्वास करने वालो से कहीं ज्यादा हैं।

शैतान एक आसमान से गिरे हुए देवदूत हैं, ये अवधारणा ईसाई धर्म के सिद्धांतों से है, लेकिन इस्लाम के अनुसार शैतान एक जिन्न है, न कि एक देवदूत। ईश्वर ने क़ुरआन में शैतान के बारे में बहुत कुछ बताया है। भाग दो में हम शैतान के बारे में और अधिक चर्चा करेंगे कि किस तरह उसे ईश्वर की दया से बाहर कर दिया गया।



फुटनोट:

[1]शिर्क - मूर्तिपूजा या बहुदेववाद का पाप है। इस्लाम सिखाता है कि ईश्वर एक है, अकेला है, बिना किसी साथी, संतान या मध्यस्थ के।

[2] इब्न अकील आकम अल मिरजान फी अहकाम अल जान। पृष्ठ 7

[3]सहीह मुस्लिम

[4] आकम अल जान, 8.

[5]अत तबरानी, अल हकीम और अल-बेहाकी

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क्या हम अकेले हैं? (3 का भाग 2): शैतान कौन है?

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विवरण: सबसे पहला पाप शैतान ने किया था और तब से लेकर आज तक वो लोगों को अविश्वास, अत्याचार और पाप करने के लिए बहका रहा है।

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क्या शैतान जिन्नों में से एक है? [1]Are_We_Alone_(part_2_of_3)._001.jpg शैतान को असुर, दुष्ट, इब्लीस, बुराई का अवतार, कई नामों से जाना जाता है। ईसाई आमतौर पर उसे शैतान कहते हैं; मुसलमानों मे भी उन्हें शैतान के नाम से जाना जाता है। हमें सबसे पहले आदम और हव्वा की कहानी में इसके बारे में पता चला और हालांकि ईसाई और इस्लामी परंपराओं में बहुत कुछ समान है, लेकिन कुछ स्पष्ट अंतर हैं।

आदम और हव्वा की कहानी के बारे में लगभग सभी को पता है और इसका इस्लामी संस्करण इस वेबसाइट पर उपलब्ध है। [2] क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) की परंपराएं किसी भी तरह यह नही बताती कि शैतान सांप के रूप में आदम और हव्वा के पास आया था। न ही वे यह बताती है कि उन दो में से कमजोर हव्वा थी जिसने आदम को ईश्वर की आज्ञा न मानने के लिए प्रलोभित किया। वास्तविकता यह थी कि आदम और हव्वा को शैतान की फुसफुसाहट और चालों के बारे मे पता नही था और उसके साथ उनका व्यवहार पूरी मानवजाति के लिए एक महत्वपूर्ण सबक है।

शैतान आदम से ईर्ष्या करने लगा और उसने उसके सामने झुक कर प्रणाम करने की ईश्वर की आज्ञा का पालन करने से मना कर दिया। ईश्वर हमें क़ुरआन में इसके बारे में बताता है:

"अतः उनसब स्वर्गदूतों ने झुक कर प्रणाम किया इब्लीस के सिवा, उसने झुक कर प्रणाम करने से मना कर दिया। ईश्वर ने पूछाः 'हे इब्लीस! तुझे क्या हुआ कि तूने झुक कर प्रणाम करने से मना कर दिया?' उसने कहाः 'मैं ऐसा नहीं हूं कि एक मनुष्य को झुक कर प्रणाम करूँ, जिसे तूने सड़े हुए कीचड़ के सूखे गारे से पैदा किया है।' ईश्वर ने कहाः यहां से निकल जा, वास्तव में तू धिक्कारा हुआ है। और तुझपर धिक्कार है, प्रलय के दिन तक।'" (क़ुरआन 15:30-35)

शैतान तब भी घमंडी था और अब भी घमंडी है। उसने उसी क्षण शपथ ली कि वो आदम, हव्वा और उनके वंशजों को गुमराह करेगा और धोखा देगा। जब उसे स्वर्ग से निकाला गया, तो शैतान ने ईश्वर से वादा किया कि यदि वो न्याय के दिन तक जीवित रहा तो वह मानवजाति को गुमराह करने के लिए अपनी पूरी कोशिश करेगा। शैतान चालाक और धूर्त है, लेकिन अंततः मनुष्य की कमजोरियों को समझता है; वह उनके प्यार और इच्छाओं को पहचानता है और उन्हें धार्मिकता के मार्ग से दूर करने के लिए हर तरह की चाल और धोखे का इस्तेमाल करता है। उसने मानवजाति के लिए पाप को आकर्षक बनाना शुरू कर दिया और उन्हें बुरी चीजों और अनैतिक कार्यों से लुभाने लगा।

"अब, वास्तव में, इब्लीस (शैतान) ने साबित कर दिया था कि उनके बारे में उसकी राय सही थी: क्योंकि उन्होंने अनुसरण किया उसका - कुछ विश्वासियों को छोड़कर।" (क़ुरआन 34:20)

अरबी में शैतान शब्द का किसी भी घमंडी या ढीठ प्राणी के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं और यह इस विशेष प्राणी पर लागू होता है, क्योंकि वो ईश्वर के प्रति जिद्दी और विद्रोही है। शैतान एक जिन्न है, एक ऐसा प्राणी जो सोच सकता है, तर्क कर सकता है और स्वतंत्र इच्छा रखता है। वह निराशा से भरा हुआ है क्योंकि उसे ईश्वर की दया से वंचित होने का महत्व पता है। शैतान ने अपने साथ अधिक से अधिक मनुष्यों को नर्क की गहराइयों में ले जाने की कसम खाई है।

"शैतान ने कहा: तू बता, क्या यही है, जिसे तूने मुझपर प्रधानता दी है? यदि तूने मुझे प्रलय के दिन तक अवसर दिया, तो मै इसके वंशजों को अपने नियंत्रण में कर लूंगा कुछ को छोड़कर।" (क़ुरआन 17:62)

ईश्वर हमें पूरे क़ुरआन में शैतान की दुश्मनी के खिलाफ चेतावनी देता है। वह आसानी से लोगों को धोखा देने, गुमराह करने और बरगलाने में सक्षम है। वह पाप को स्वर्ग का रास्ता बना के दिखाने में सक्षम है और जब तक व्यक्ति पूरी तरह सावधान न हो, उसे आसानी से गुमराह किया जा सकता है। सर्वशक्तिमान ईश्वर कहता है:

“ऐ आदम की सन्तान। ऐसा न हो कि शैतान तुम्हें बहका दे।" (क़ुरआन 7:27)

"वास्तव में, शैतान तुम्हारा शत्रु है। अतः तुम उसे अपना शत्रु ही समझो।" (क़ुरआन 35:6)

"जो शैतान को ईश्वर के सिवा सहायक बनायेगा, वह खुली क्षति में पड़ जायेगा।" (क़ुरआन 4:119)

जैसा कि बताया गया है, शैतान का अंतिम उद्देश्य लोगों को स्वर्ग से दूर ले जाना है, लेकिन उसके छोटे-छोटे लक्ष्य भी हैं। वह लोगों को मूर्तिपूजा और बहुदेववाद की ओर ले जाने की कोशिश करता है। वह उन्हें पाप करने और अवज्ञा करने के लिए लुभाता है। यह कहना सही है कि अवज्ञा का हर वो कार्य जिससे ईश्वर घृणा करता है शैतान को प्रिय है, शैतान अनैतिकता और पाप से प्रेम करता है। वह विश्वासियों के कानों में फुसफुसाता है, वह ईश्वर की प्रार्थना और स्मरण को बाधित करता है और हमारे मन को महत्वहीन बातों से भर देता है। इब्न उल कय्यम ने कहा, "उसकी एक साजिश यह है कि वह हमेशा लोगों के दिमाग को तब तक बहकाता है जब तक कि वो धोखा न खा जाए, वह नुकसान पहुंचाने वाले कार्यों को हमें आकर्षक बना के दिखाता है।"

वो कहते हैं कि यदि तुम धन का दान करोगे तो तुम गरीब हो जाओगे, वे फुसफुसाते हैं कि अगर तुम ईश्वर के लिए बाहर निकलोगे तो अकेले पड़ जाओगे। शैतान लोगों के बीच दुश्मनी करवाता है, लोगों के मन में संदेह पैदा करता है और पति-पत्नी के बीच दरार पैदा करता है। उसे धोखा देने का बहुत अनुभव है। उसके पास चालें और प्रलोभन हैं, उसके शब्द चिकने और मोहक होते हैं और उसके पास मदद के लिए मानवजाति और जिन्न की फौज है। हालांकि, जैसा कि हमने पिछले लेख में बताया है कि जिन्नों में विश्वास करने वाले भी हैं, लेकिन अधिक संख्या शरारत करने वालों या बुरे काम करने वालों की है। वे ईश्वर के सच्चे विश्वासियों को डराने, छल करने और अंततः नष्ट करने के कार्य मे स्वेच्छा से और खुशी से शैतान का साथ देते हैं।

अगले लेख में हम चर्चा करेंगे कि जिन्न कहां इकट्ठा होते हैं, उनके संकेतों को कैसे पहचानें और अपने और अपने परिवार को उनकी शरारतों से कैसे बचाएं।



फुटनोट:

[1] अल अश्कर, उ. (2003)। दी वर्ल्ड ऑफ़ जिन्न एंड डेविल्स। इस्लामी पंथ श्रृंखला। इंटरनेशनल इस्लामिक पब्लिशिंग हाउस: रियाद। और इघातत अल लहफ़ान में शेख इब्न अल क़य्यम।

[2] http://www.islamreligion.com/articles/1190/

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क्या हम अकेले हैं? (3 का भाग 3): जिन्न हमारे बीच मौजूद हैं, लेकिन हमसे अलग हैं।

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विवरण: जिन्न कहां रहते हैं और उनसे अपनी रक्षा कैसे करें

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Are_We_Alone_(part_3_of_3)._001.jpgहम अकेले नहीं हैं! यह बात साइंस फिक्शन फिल्म के विज्ञापन के जैसी लगती है। बस ऐसा ही हो सकता था, लेकिन ऐसा नहीं है। हम वास्तव में पृथ्वी पर अकेले नहीं हैं। हम ईश्वर के बनाये हुए प्राणी हैं, लेकिन हम ईश्वर के बनाये हुए एकमात्र प्राणी नहीं हैं। पिछले दो लेखों में हमने जिन्न के बारे में बहुत कुछ जाना है। हमने बताया कि ईश्वर ने जिन्न को अग्नि की ज्वाला से मनुष्यों से पहले बनाया था। हमने यह भी बताया कि जिन्न पुरुष और महिला, अच्छे और बुरे, आस्तिक और नास्तिक होते हैं।

जिन्न हमारी दुनिया में मौजूद हैं, फिर भी वे हमसे अलग हैं। शैतान जिन्न में से है और उसके अनुयायी जिन्न और मनुष्यों दोनों में से होते हैं। जैसा कि अब हम जान चुके हैं कि हम अकेले नही हैं, तो यह आवश्यक है कि जिन्न की उपस्थिति का संकेत देने वाले संकेतों को पहचानें और जानें कि उनकी शरारतों और बुरे कामों से खुद को कैसे बचाया जाए।

"हमने मनुष्य को सड़े हुए गारे की खनखनाती हुई मिट्टी से बनाया है। और इससे पहले जिन्नों को हमने अग्नि की ज्वाला से पैदा किया।” (क़ुरआन 15:26-27)

"मैंने जिन्नो और मनुष्यों को सिर्फ अपनी पूजा करने के लिए पैदा किया है।" (क़ुरआन 51:56)

क्योंकि जिन्न हमारे साथ इस दुनिया मे रहते हैं, हमें उनके रहने के स्थान का पता होना चाहिए। जिन्न एक साथ खंडहर और सुनसान जगहों पर इकट्ठा होते हैं, और कभी-कभी तो बहुत बड़ी संख्या में। वे गंदगी, कचरे वाली जगह और कब्रिस्तान में इकट्ठा होते हैं। जिन्न कभी-कभी ऐसी जगहों पर इकट्ठा होते हैं जहां उनके लिए शरारत करना और तबाही मचाना आसान होता है, जैसे कि बाजार वाली जगह।

पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) की परंपराओं से हमें पता चलता है कि उनके कुछ साथियों ने लोगों को सलाह दी थी कि वे बाजार वाली जगहों पर सबसे पहले न जाएं और सबसे आखिर तक न रुकें क्योंकि ये शैतानों के लिए युद्ध का मैदान होता है।[1]

यदि कोई शैतान आदमी के घर को अपने रहने की जगह बना ले तो उसके लिए ईश्वर ने हमें "हथियार" दिए हैं जिससे हम उन्हें अपने घरों से निकाल सकते हैं। इनमें शामिल है बिस्मिल्लाह (शुरू करता हूं मै ईश्वर के नाम से) कहना, ईश्वर को बार-बार याद करना और क़ुरआन के किसी भी छंद का पाठ करना, विशेष रूप से अध्याय दो और तीन का पाठ करना। जिन्न जब भी प्रार्थना की पुकार सुनते हैं तो वो भाग जाते हैं।

पैगंबर मुहम्मद ने समझाया कि जिन्न बड़ी संख्या में इकट्ठा होते हैं और अंधेरा छाने पर फैल जाते हैं। इसी वजह से उन्होंने शाम के समय अपने बच्चों को अंदर रखने की आज्ञा दी। [2] उन्होंने हमें यह भी बताया कि जिन्न के पास जानवर होते हैं और उनके जानवरों का भोजन हमारे जानवरों का गोबर है।

कभी-कभी मनुष्यों के जानवर जिन्न से जुड़े होते हैं। उदाहरण के लिए, कई जिन्न सांपों का रूप धारण करने में सक्षम हैं और पैगंबर मुहम्मद ने काले कुत्तों को शैतान बताया। उन्होंने यह भी बताया कि "ऊंटों के बाड़े में प्रार्थना न करें क्योंकि उनमें शैतान रहते हैं।" [3] उन्होंने ऊंटों को उनके आक्रामक स्वभाव के कारण जिन्न से जोड़ा।

ऐसे कई तरीके हैं जिनसे हम अपने और अपने परिवार को जिन्नों की शरारतों से बचा सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण है ईश्वर की ओर जाना और उनसे मदद मांगना; हम क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाओं का पालन करके ऐसा कर सकते हैं। ईश्वर की शरण मे आने पर, वो हमें जिन्न और शैतानों से बचाएंगे। जब हम बाथरूम में जाएं [4], जब हम क्रोधित हों [5], संभोग से पहले [6], और यात्रा पर आराम करते समय या घाटी में यात्रा करते समय [7]. हमें ईश्वर से सुरक्षा की मदद मांगनी चाहिए। क़ुरआन पढ़ते समय भी ईश्वर की शरण लेना जरूरी है।

"तो जब आप क़ुर्आन पढ़ें, तो धिक्कारे हुए शैतान से ईश्वर की शरण मांग लिया करें। वस्तुतः, उसका वश उनपर नहीं है जो आस्तिक हैं और अपने पालनहार पर ही भरोसा करते हैं।" (क़ुरआन 16:98-99)

जिन्न के स्वभाव को समझने से, हमारे लिए दुनिया में होने वाली कुछ अजीबोगरीब घटनाओं को समझना आसान हो गया है। लोग भविष्य या अज्ञात को जानने के लिए ज्योतिषियों और मनोविज्ञान की ओर रुख करते हैं। टेलीविजन और इंटरनेट पर पुरुष और महिलाएं मृत लोगों से बात करके गुप्त और रहस्यमय जानकारी देने का दावा करते हैं। इस्लाम हमें बताता है कि ऐसा संभव नही है। तथाकथित भविष्यवक्ताओं और ज्योतिषियों का दावा है कि वे भविष्य की भविष्यवाणी कर सकते हैं और सितारों और अन्य स्वर्गीय पिंडों का संरेखण देखे के किसी का व्यक्तित्व बता सकते हैं। इस्लाम हमें बताता है कि यह भी संभव नहीं है।

हालांकि, प्राचीन काल में जिन्न आसमान पर जाने मे सक्षम थे। उस समय वे छिपकर बातें सुन सकते थे और घटनाओं के होने से पहले उसके बारे में पता लगा सकते थे। पैगंबर मुहम्मद के समय आसमान की सुरक्षा बढ़ा दी गई थी और अभी भी वैसी ही है। जिन्न अब आसमान की बातें छिपकर नहीं सुन सकते।

"और हमने आकाश तक पहुंचने की कोशिश की, तो पाया कि भर दिया गया है पहरेदारों तथा धधकती आग से। और ये कि हम बैठते थे उस (आकाश) पर बातें सुनने के स्थानों में और जो अब सुनने का प्रयास करेगा, वह पायेगा अपने लिए धधकती हुई आग को घात में लगा हुआ। और ये कि हम नहीं समझ पाते कि क्या किसी बुराई का इरादा किया गया धरती वालों के साथ या इरादा किया है, उनके साथ उनके पालनहार ने सीधी राह पर लाने का।" (क़ुरआन 72:8-10)

पैगंबर मुहम्मद ने इन छंदों का अर्थ समझाया। "जब ईश्वर ने आसमान में कुछ कार्य निर्धारित किया, तो स्वर्गदूतों ने उनके कथन के आज्ञाकारिता में अपने पंखों को हिलाया, जो एक चट्टान पर खींची गई जंजीर की तरह लगता है। स्वर्गदूतों ने कहा, 'तुम्हारे पालनहार ने क्या कहा?' उनमे से कुछ ने कहा, 'सत्य, वह अति उच्च, महान है।' (क़ुरआन 34:23) फिर जो (यानी शैतान या जिन्न) चोरी से सुन लेते हैं एक के ऊपर एक खड़े हो के। अपने नीचे वाले को खबर देने से पहले एक ज्वाला उसे जला देगी, या तब तक नहीं जलायेगी जब तक वह इसे अपने नीचे वाले को नहीं बता देता, फिर दूसरा उसे अपने नीचे वाले को नही बता देता, और इसी तरह जब तक वे पृथ्वी तक समाचार नहीं पहुंचा देते।[8]

जिन्न सच्चाई का एक भाग ले के इसे झूठ के साथ मिला के लोगों को भ्रमित और गुमराह करते हैं। हालांकि अजीब घटनाएं विचलित करने वाली और कभी-कभी डरावनी होती हैं, लेकिन यह लोगों को ईश्वर से दूर करने के लिए की गई दुष्ट शरारतों से ज्यादा कुछ नहीं है। कभी-कभी जिन्न और मानव शैतान मिलकर विश्वासियों को धोखा दे के शिर्क का पाप करवाते हैं।

कभी-कभी इस अजीब और अद्भुत दुनिया में हमें उन परिक्षाओं और समस्याओं का सामना करना पड़ता है जो अक्सर हमें गुमराह कर देते हैं। जिन्न की शरारतों और बुरे इरादों से निपटना और भी बड़ी परीक्षा लगती है। हालांकि यह जानकर सुकून मिलता है कि ईश्वर सभी शक्ति का स्रोत है और उसकी अनुमति के बिना कुछ भी नही होता है।

पैगंबर मुहम्मद ने हमें बताया कि मनुष्यों और जिन्न की बुराई से ईश्वर की सुरक्षा पाने का सबसे अच्छा तरीका क़ुरआन के अंतिम तीन अध्याय हैं। कभी-कभी हमें जिन्नों की बुराई का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन ईश्वर हमारा सुरक्षित आश्रय है, और उनकी ओर जाना ही हमारा बचाव है। ईश्वर की सुरक्षा के अलावा कोई और सुरक्षा नही है, हम सिर्फ उसी की पूजा करते हैं और सिर्फ उसी से मदद मांगते हैं।



फुटनोट:

[1]सहीह मुस्लिम

[2]सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम

[3]अबू दाऊद।

[4] इबिड

[5]सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम

[6] इबिड

[7]इब्न माजा।

[8]सहीह अल-बुखारी

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