इस्लाम में मोक्ष (3 का भाग 1): मोक्ष क्या है?
विवरण: सच्ची पूजा से मोक्ष प्राप्त करें
- द्वारा Aisha Stacey (© 2010 IslamReligion.com)
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
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इस्लाम यह शिक्षा देता है कि मोक्ष की प्राप्ति केवल ईश्वर की प्रार्थना से ही संभव है। व्यक्ति को ईश्वर पर विश्वास करना चाहिए और उसके निर्देशों का पालन करना चाहिए। यही संदेश मूसा और यीशु सहित सभी पैगंबरों ने दिया है। वह केवल एक ही है जो पूजा के योग्य है। एक ईश्वर, बिना किसी साथी, पुत्रों, या पुत्रियों के। मोक्ष और उससे अनत सुख की प्राप्ति सच्ची पूजा से ही प्राप्त की जा सकती हैं।
इसके अतिरिक्त इस्लाम यह शिक्षा भी देता है कि मनुष्य पाप रहित पैदा होता है और इसलिए उसका स्वाभाविक झुकाव केवल ईश्वर की पूजा ही है (बिना किन्हीं मध्यस्थों के)। इस पापरहित अवस्था को बनाए रखने के लिये मनुष्य जाति को ईश्वर के निर्देशों का पालन करना चाहिए और एक सच्चा न्यायप्रिय जीवन बिताने का प्रयत्न करना चाहिए। अगर हम पाप में लिप्त हो जाएँ, तो केवल एक उपाय है कि हम सच्चे मन से पश्चाताप करें और फिर ईश्वर से क्षमा की प्रार्थना करें। जब कोई व्यक्ति पाप करता है तो वह अपने आप को ईश्वर की कृपा से दूर कर देता या कर देती है, लेकिन सच्चा पश्चाताप उसे वापस ईश्वर के पास ले आता है।
मोक्ष एक शक्तिशाली शब्द है जिसे शब्दकोश में बचाव होना या विनष्ट होने, किसी कठिनाई, या किसी बुराई से मुक्ति पाने के अर्थ में परिभाषित किया गया है। धर्म की दृष्टि से इसका अर्थ पाप और उसके दुष्परिणामों से रक्षा है। विशेषकर, ईसाई धर्म में यह जीसस के पश्चाताप और मुक्ति से संबंधित है। इस्लाम में मोक्ष का अलग ही सिद्धांत है। इसमें यह नरक की अग्नि से मुक्ति है, जबकि यह ईसाई धर्म के कुछ मूलभूत सिद्धांतों को अस्वीकार करता है और स्पष्ट रूप से कहता है कि मोक्ष उस सबसे कृपालु, ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्थन से ही प्राप्त होता है।
“जो ईश्वर का स्मरण करते हैं (सदैव, और प्रार्थनाओं में) खड़े हुए, बैठे हुए, और लेटे हुए, और गहराई से धरती और स्वर्ग के सृजन के बारे में सोचते हैं, (कहते हुए), "मेरे ईश्वर ! आपने यह (सब) व्यर्थ ही नहीं बनाए हैं, आपकी जय हो! (आप महान हैं उन सबसे जिन्हें वे आपके साथ साथी की तरह जोड़ते हैं )। हमें अग्नि की प्राणांतक पीड़ा से बचाएँ। ” (क़ुरआन 3:191)
ईसाई मत के अनुसार, मनुष्य जाति को बिगड़ी हुई और पापग्रस्त माना गया है। मनुष्य के अस्तित्व के मूल में पाप होने सिद्धांत कहता है कि मनुष्य जाति पहले ही आदम के पाप से कलंकित है और इस तरह ईश्वर से विमुख है, और उसे एक तारणहार (मुक्त करनेवाला) की आवश्यकता है। दूसरी तरफ इस्लाम, अस्तित्व के मूल में पाप होने और मानव जाति पैदाइशी पापी होने के ईसाई विचार को खारिज करता है।
मासूम बच्चों के पापग्रस्त होने का विचार ही एक आस्तिक को बिल्कुल बेतुका सा लगता है, जो जानता है कि इस्लाम मनुष्य के निर्माण के मूल में क्षमा होने की बात मानता है पाप के होने की नहीं। इस्लाम के अनुसार मानव जाति शुचिता की अवस्था में जन्म लेती है, वह पाप रहित अवस्था होती है, और स्वाभाविक है कि ईश्वर की पूजा और प्रशंसा में विश्वास करती है। लेकिन साथ ही मनुष्य जाति को स्वतंत्र सोचने की शक्ति भी प्राप्त हुई है और इसलिए वह गलतियाँ भी कर सकती है और पाप भी; यहाँ तक कि वह बड़े दुष्टपूर्ण कार्य भी कर सकती है।
जब भी कोई व्यक्ति पाप करता है, वह अकेला ही उस पाप का जिम्मेदार होता है। हर व्यक्ति अपने क्रियाकलाप का जिम्मेदार होता है। परिणाम स्वरूप, कोई भी व्यक्ति जो इस संसार में आया है आदम और हव्वा की गलतियों का जिम्मेदार नहीं है। ईश्वर क़ुरआन में कहते हैं:
“और कोई बोझ उठाने वाला किसी दूसरे का बोझ नहीं उठाएगा।” (क़ुरआन 35:18)
आदम और हव्वा ने गलती की, उन्होंने सच्चे दिल से पश्चाताप किया, और ईश्वर ने अपनी अथाह (असीमित) समझ-बूझ के साथ उन्हें क्षमा किया। मानव जाति का भाग्य पीढ़ियों दर पीढ़ी दंडित होने का नहीं है। पिता के दुष्कर्मों का हिसाब पुत्रों को नहीं देना होता।
“तब उन दोनों ने उस पेड़ का खाया, इसलिए उनके गुप्त अंग उन्हें दिखाई देने लगे, और उन्होंने स्वयं को ढकने के लिये अपने ऊपर स्वर्ग की पत्तियां लगा लीं। इस तरह आदम ने अपने ईश्वर की अवज्ञा की, और गलत राह पर चला गया। तब ईश्वर ने उसे चुना, और उसकी तरफ़ मुड़े और क्षमा किया और मार्गदर्शन किया।” (क़ुरआन 20:121-122)
सबसे प्रथम इस्लाम सिखाता है कि ईश्वर बहुत क्षमाशील है, और बार बार क्षमा करता है। गलतियाँ करना मनुष्य का स्वभाव है। कभी कभी गलतियाँ बिना सोचे समझे या बिना किसी बुरे आशय से की जातीं हैं, लेकिन कभी हम जानबूझ कर भी पाप करते हैं और दूसरों को हानि पहुंचाते हैं। इसलिए मनुष्य होने के नाते हमें सतत क्षमा की आवश्यकता होती है।
इस संसार में जीवन बहुत परीक्षाओं और समस्याओं से घिरा होता है, लेकिन ईश्वर ने मनुष्य जाति को इन समस्याओं में अकेला नहीं छोड़ा है। ईश्वर ने मनुष्य को बुद्धि दी है और विकल्प चुनने और निर्णय लेने का विवेक दिया है। ईश्वर ने हमें मार्गदर्शन के उपदेश दिए हैं। हमारे सर्जक के रूप में, उसे हमारे स्वभाव का पता है और हमें उस सीधे सच्चे मार्ग पर चलने की सीख दी है जो अनंत सुख की ओर ले जाता है।
क़ुरआन ईश्वर का अंतिम पैगाम है और समूची मानव जाति के लिये लागू है; सब लोगों पर, सब स्थानों पर, सभी समयों पर। पूरी क़ुरआन में ईश्वर हमें पश्चाताप के लिये उसके पास जाने और क्षमा माँगने के लिये कहते हैं। यही मोक्ष का मार्ग है। यही विनाश से हमारा बचाव है।
“और जो भी स्वयं पाप करता है या गलती करता है लेकिन बाद में ईश्वर से क्षमा माँगता है, वह अक्सर उस महान दयालु ईश्वर से क्षमा पाएगा” (क़ुरआन 4:110)
“और ओ मेरे लोगों! अपने मालिक से क्षमा मांगों और उससे पश्चाताप करो, वह तुम्हारे लिये (आकाश से) खूब बारिश भेजेगा, तुम्हारी शक्ति को और शक्ति देगा, इसलिए अपराधियों, ईश्वर के एक होने में अविश्वास करने वालों की तरह वापस मत जाओ।” (क़ुरआन 11:52)
“कहो: ‘ओ मेरे सेवकों जिन्होंने अपनी हदें पार की हैं (बुरे काम और पाप करके)! ईश्वर की दया से निराश मत हो, वाकई में ईश्वर सभी पाप माफ़ कर देता है। सच में, वह क्षमाशील है, सबसे दयालु है।” (क़ुरआन 39:53)
क़ुरआन केवल मार्गदर्शन की पुस्तक नहीं है, यह उम्मीद की किताब है। इसमें ईश्वर का प्रेम, दया, और क्षमा बहुत स्पष्ट हैं और इस तरह मनुष्य जाति को स्मरण कराया गया है कि निराश होकर न बैठ जाएँ। किसी व्यक्ति ने कोई भी पाप क्यों न किया हो यदि वह धृढ़तापूर्वक क्षमा माँगने ईश्वर की शरण लेता है, तो उसका मोक्ष पाना निश्चित है।
पैगंबर मुहम्मद ने पाप को हृदय को ढकने वाले काले धब्बे कहा है। उन्होंने कहा, "वाकई अगर कोई आस्तिक पाप करता है, एक काला धब्बा उसके दिल को ढक लेता है। अगर वह पश्चाताप करता है, पाप करना बंद कर देता है, उसका हृदय फिर साफ़ हो जाता है। और अगर वह पाप करना चालू रखता है (पश्चाताप करने के बजाय) तो वह बढ़ते रहते हैं जब तक कि पूरा हृदय ही ढक नहीं जाता...”[1]
उस मूल पाप के धब्बे के कारण इस्लाम में मोक्ष की आवश्यक्ता नहीं है। मोक्ष की आवश्यकता होती है क्योंकि मनुष्य जाति परिपूर्ण नहीं और उसे ईश्वर की क्षमा और प्रेम की आवश्यकता होती है। मोक्ष के सिद्धांत को सही ढंग से समझने के लिये हमें मोक्ष से जुड़े अन्य विषयों को समझना चाहिए। ये हैं, तौहीद के महत्व को समझने की जरूरत, या ईश्वर एक ही है, और सच्चे दिल से कैसे माफ़ी मांगी जाए। इन विषयों पर हम अगले दो लेखों में बात करेंगे।
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