मेरी दया मेरे क्रोध से अधिक है (2 का भाग 2)
विवरण: दया शत्रुओं और जानवरों के लिए भी है।
- द्वारा Hala Salah (Reading Islam)
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
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क्या यह युद्ध हो सकता है?
इस्लाम युद्ध और शांति के समय दुश्मनों पर भी दया करने को कहता है, क्योंकि पैगंबर मुहम्मद अपने साथियों से उन रिश्तेदारों को बुलाकर और उन्हें उपहार देकर उनके साथ पारिवारिक संबंध बनाए रखने को कहते थे जो अभी भी अविश्वासी थे।
जहां तक युद्ध की बात है, तो यदि दुश्मन शरण मांगे तो ईश्वर ने मुसलमानों को आदेश दिया की वो दुश्मनों को शरण दें, और किसी को भी उन्हें नुकसान पहुंचाने से मना करें। यह क़ुरआन में कहा गया है, जहां ईश्वर कहता है कि इसका क्या अर्थ है:
"और यदि कोई मूर्तिपूजक तुमसे शरण मांगे, तो उसे शरण दे दो, ताकि वो ईश्वर की बातें सुन सके। फिर उसे सुरक्षित स्थान तक पहुंचा दो। ऐसा इसलिए कि वे ज्ञान नहीं रखते हैं।" (क़ुरआन 9:6)
पैगंबर ने अपने साथियों को बुजुर्गों, घायलों, महिलाओं, बच्चों और पूजा स्थलों में लोगों को नुकसान पहुंचाने से मना किया था। इसके साथ ही खेतों को नष्ट करना मना है। शत्रुओं की लाशों को विकृत करने पर सख्त प्रतिबंध लगाया था और उन्हें सम्मान से जल्दी दफनाने का आदेश दिया गया था।
बंदियों के संबंध में पैगंबर के आदेशों का उनके साथियों ने सख्ती से पालन किया। एक कहानी में एक बंदी हमसे जुड़ी एक लड़ाई के बारे में कहता है कि पकड़े जाने के बाद वह एक मुस्लिम परिवार के साथ रह रहा था। जब भी वे भोजन करते थे, तो वे उसे पहले रोटी खिलाते थे जबकि वे खुद केवल खजूर खाते थे।
जब पैगंबर (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) कुरैश को हराने के बाद मक्का में पहुंचे तो वह उनके पास गए और उनसे पूछा:
"तुम मुझसे कैसे व्यवहार की उम्मीद करते हो?"
उन्होंने कहा, “आप एक सज्जन भाई हो और एक सज्जन भाई के पुत्र हो! हम आपसे अच्छाई के अलावा और कुछ नहीं चाहते।"
फिर पैगंबर ने घोषणा की, "मैं तुमसे वही बात कहता हूं जो यूसुफ (पैगंबर यूसुफ) ने अपने भाइयों से कहा था:
"आज तुमपर कोई दोष नहीं, ईश्वर तुम्हें क्षमा कर दे, वही सर्वाधिक दयावान् है" (क़ुरआन 12:92)
जाओ, क्योंकि तुम वास्तव में स्वतंत्र हो।"
उस समय जब सहिष्णुता और क्षमा की उम्मीद कम ही होती थी, पैगंबर ने सभी बंदियों को बिना रकम के रिहा करके दया और क्षमा का एक उदाहरण स्थापित किया, और मुसलमानों के उत्पीड़न और क्रूर यातना से उन्हें बचा लिया, जो इस्लाम का संदेश देने के बाद के शुरुआती 13 वर्षों तक होता रहा था।
ईश्वर के बनाये सभी जीव
इस्लाम में जानवरों की भी उपेक्षा नहीं की गई और उन्हें कई अधिकार दिए गए हैं। उदाहरण के लिए, जब पैगंबर ने एक गधे के चेहरे पर छाप देखा, तो उन्होंने कहा:
"क्या तुमने नहीं सुना कि मैंने ऐसे व्यक्ति को शाप दिया है जो किसी जानवर के चेहरे पर छाप लगाता है या जो उसके चेहरे पर मारता है?" (सहीह मुस्लिम)
पैगंबर ने एक बार कहा था कि एक महिला को एक बिल्ली के कारण नरक में भेजा गया, क्योंकि उसने बिल्ली को कैद कर रखा था, वो न तो उसे खिलाती थी और न ही उसे छोड़ती थी ताकि वो खुद अपने भोजन के लिए शिकार कर सके। दूसरी ओर पैगंबर ने कहा कि एक आदमी को स्वर्ग इसलिए भेजा गया क्योंकि उसने रेगिस्तान में प्यास से तड़प रहे एक कुत्ते को पानी पिलाया था।
पैगंबर ने जानवरों का वध करने से पहले उनके सामने चाकू की धार तेज करने से मना किया। इसके अलावा, एक जानवर को दूसरे के सामने मारना प्रतिबंधित है। यह पैगंबर के एक कथन से स्पष्ट है:
"ईश्वर हर चीज में दया चाहता है, इसलिए जानवरों को मारते और वध करते समय तुम दयालु रहो: उनके दर्द को कम करने के लिए अपने चाकू की धार तेज रखो" (सहीह अल-बुखारी)।
पैगंबर के साथियों में से एक ने ये घटना बताई: जब वे पैगंबर के साथ यात्रा कर रहे थे, तो उन्होंने एक चिड़िया को देखा जो अपने छोटे बच्चों के साथ थी, उन्होंने उस माँ से उसके बच्चे ले लिए। चिड़िया आयी और अपने पंख फड़फड़ाने लगी, तो पैगंबर ने कहा:
“किसने इस चिड़िया का बच्चा लेकर उसे दुख दिया है? उन्हें शीघ्र लौटा दो” (सहीह अल-बुखारी)।
पैगंबर ने जानवरों के अधिकारों की पुष्टि की जब उन्होंने कहा कि जो कोई भी एक जीवित वस्तु को लक्ष्य के रूप लेगा वह शापित है। जानवरों को उस हद तक लड़ने के लिए मजबूर करना की वो एक दूसरे में सींघ घुसा दें प्रतिबंधित है, क्योंकि जानवरों में भावनाएं होती हैं और यह उनके लिए निश्चित ही यातना होगी।
दया की इस्लामी अवधारणा समग्र है और पूरी सृष्टि की खुद के साथ और सृष्टिकर्ता के साथ परस्पर संबंध पर जोर देती है। दया ईश्वर से शुरू होती है और वो प्रत्येक जीवित प्राणी को दया देता है। जानवर और मनुष्य समान रूप से एक दूसरे के साथ सद्भाव से रहने के लिए दया दिखाते हैं, और इस दया के बदले में ईश्वर उन पर और भी अधिक दया दिखाता है। इस्लाम की यह दृष्टि लोगों के बीच की बाधाओं को तोड़ने को प्रोत्साहित करती है और वह अंतर्निहित नींव है जिस पर जीवन और सभ्यता दोनों का निर्माण होता है।
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