ईश्वर के होने की निशानियां (2 का भाग 1)
विवरण: क़ुरआन ईश्वर का सबसे बड़ा चमत्कार है और मानवजाति के अंतिम पैगंबर मुहम्मद को दिया गया था। भाग 1: क़ुरआन में ईश्वर के होने की कुछ निशानियां।
- द्वारा IslamReligion.com
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
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ईश्वर मनुष्यों का मार्गदर्शन करना चाहता है, और सही मार्ग दिखाने के लिए उसने पुस्तकें और रहस्योद्घाटन भेजे। उदाहरण के लिए उसने इब्राहीम को "सुहोफ", मूसा को तौरात, दाऊद को ज़बूर और मरियम के पुत्र यीशु को इंजील दिया; और अंत में उन्होंने पैगंबर मुहम्मद को क़ुरआन दिया (ईश्वर की दया और कृपा इन सभी पर बनी रहे)। पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) ईश्वर की ओर से भेजे गए आखिरी पैगंबर हैं जिन्हे पूरी मानवजाति के लिए दुनिया के ख़त्म होने तक भेजा गया है। पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "हर पैगंबर को विशेष रूप से सिर्फ उनके राष्ट्र के लिए भेजा गया था, लेकिन मुझे सभी मानवजाति के लिए भेजा गया है।"[1]
क़ुरआन ईश्वर की किताब है और इस दुनिया में पढ़ने के लिए कोई अन्य किताब इससे ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है। "यह (क़ुरआन) तुम्हारे ईश्वर की ओर से सबूत और विश्वास करने वालों के लिए मार्गदर्शन और दया है।" (क़ुरआन 7:203)। क़ुरआन बताता है कि मानवजाति को ईश्वर के होने की "निशानियां" दिखाई जाएगी। वास्तव में अनुवादित शब्द "निशानियां" का क़ुरआन में इतना बड़ा महत्व है कि इसका 150 से अधिक बार उल्लेख किया गया है, और हर जगह यह ईश्वर के होने का उल्लेख करता है। ईश्वर ने मनुष्यों को बुद्धि दी ताकि हम उसकी निशानियों पर चिंतन, विश्लेषण कर सकें और निष्कर्ष निकाल सकें और फिर उसकी निशानियों के अनुसार कार्य कर सकें। हमें दी हुई बुद्धि के अलावा, प्रत्येक मनुष्य एक शुद्ध और प्राकृतिक प्रवृत्ति के साथ पैदा होता है कि ईश्वर हमारा प्रभु है और वह एक है।
क़ुरआन में बताई गई कुछ निशानियां निम्नलिखित हैं:
1)मनुष्यों का विवेक
ईश्वर कहता है कि वह हमें अपने आप में स्पष्ट निशानियां दिखाएगा और वह हमारे और हमारे दिलों के बीच आएगा।
"हम (ईश्वर) उन्हें संसार के किनारों में तथा स्वयं उनके भीतर अपनी निशानियां दिखाएंगे जब तक उनको यह स्पष्ट न हो जाए कि यह [इस्लामी एकेश्वरवाद] सत्य है..." (क़ुरआन 41:53)
"ऐ विश्वास करने वालो, ईश्वर और पैगंबर [मुहम्मद] की पुकार सुनो, जब वह तुम्हें उसकी ओर जाने को कहे जो तुम्हें जीवन देता है। और जान लो कि ईश्वर एक आदमी और उसके दिल के बीच हस्तक्षेप करता है और तुम उसी के पास एकत्र किये जाओगे।" (क़ुरआन 8:24)
ईश्वर मनुष्य और उसके दिल के बीच में कैसे आ सकता है? उदाहरण के लिए, यदि व्यक्ति कोई गलत कार्य या बड़ा पाप करने वाला होता है तो उस व्यक्ति के दिल में एक अत्यंत भारी और दोष की भावना आती है। ऐसी भावना वास्तव में एक चेतावनी है कि इस पाप को करने से ईश्वर क्रोधित होगा।
2)कुछ घटनाएं
घर के पास से काली बिल्ली के जाने का या किसी के बगीचे में मैगपाई (नीलकण्ठ पक्षी) के आने का कोई मतलब नहीं होता, और बिल्लियां और मैगपाई बस ऐसे प्राणी हैं जो अपनी इच्छानुसार अपना जीवन जीते हैं; ये अच्छी या बुरी किस्मत नहीं लाते हैं। अंधविश्वास एक भ्रामक भावना है; वास्तव में ऐसा कुछ नही होता है। हालांकि, कुछ घटनाओं का कुछ मतलब होता है, जैसे कि क़ुरआन में आदम के बेटे कैन द्वारा अपने भाई हाबिल की हत्या के बाद उल्लेख किया गया है। "तब ईश्वर ने एक कौवा भेजा जो एक मृत कौवे के लिए जमीन में गड्ढा खोद रहा था, ताकि कैन को यह दिखाया जा सके कि अपने भाई की लाश को कैसे दफनाना है। उसने (कैन) कहा: 'मेरे लिए हाय! क्या मैं इस कौवे की तरह भी न बन सका की अपने भाई की लाश को दफना सकूं?' तो वह पछताया।" (क़ुरआन 5:31) कैन समझ गया कि यह कोई संयोग नहीं है कि उसके मरे हुए भाई का शव उसके सामने पड़ा है, और एक कौवा आया और उसके पैरों के नीचे की मिट्टी खोदने लगा।
इसी तरह, जब फिरौन ने पैगंबर मूसा की ईश्वर की ओर आने की पुकार को नजरअंदाज कर दिया और इस्राएलियों को रिहा करने से इनकार कर दिया, तो ईश्वर ने फिरौन और उसके लोगों को निशानियां भेजी (कुल मिलाकर 9 निशानियां थी)। इन निशानियों में टिड्डियां शामिल थीं जिन्होंने उस क्षेत्र की सभी फसलों को लगभग पूरी तरह से नष्ट कर दिया, जूएं, बहुत अधिक संख्या में मेंढक, और नाक से लगातार बहता हुआ खून; लेकिन फिरौन ईश्वर पर विश्वास करने और इस्राएलियों को रिहा करने के बजाय अंधविश्वासी हो गया और कहा कि ये सब जादूगर मूसा कर रहा है। "तो हमने (ईश्वर) उन पर बाढ़ और टिड्डियां और जूं और मेंढक और नाक से खून जैसी अलग-अलग निशानियां भेजी, लेकिन वो लोग अभिमानी थे और एक अपराधी थे" (क़ुरआन 7:133)
3)लोगों और सभ्यताओं को नष्ट कर दिया
पैगंबर मुहम्मद के समय यह सबको पता था कि ईश्वर ने उसके भेजे गए पैगंबरो को न मानने वाली पिछली सभी सभ्यतओं को प्रकृति द्वारा नष्ट कर दिया था। इन में आद, थमूद और लूत की सभ्यताएं शामिल थी। "और हम (ईश्वर) पहले ही तुम्हारे आस-पास के शहरो को नष्ट कर चुके हैं, और हमने विभिन्न निशानियां भेजी ताकि वे विश्वास करें और वापस आ जायें" (क़ुरआन 46:27)
ऐसी सभ्यताओं के खंडहर पैगंबर मुहम्मद के समय तक भी थे और आने-जानेवालों के देखने के लिए बचे हुए थे। पैगंबर मूसा के समय में फिरौन के विनाश के बाद, यह ईश्वर की इच्छा थी कि इस जीवन में पूरी सभ्यता (जिन्होंने अपने भेजे गए पैगंबर के संदेश को अस्वीकार कर दिया) को नष्ट नहीं किया जाएगा; इसके बजाय उनका न्याय अगले जीवन में किया जाएगा। लेकिन प्रतिदण्ड की निशनियों को देखने के लिए ज्यादा दूर देखने की जरुरत नहीं है, जैसे कि पोम्पेई का नष्ट शहर, एक ऐसा शहर जो अपने खुले पाप और व्यभिचार के लिए प्रसिद्ध था। "तो हम (ईश्वर) ने प्रत्येक लोगों को उनके पापों के कारण पकड़ लिया: उनमें से कुछ के खिलाफ हमने पत्थरों का तूफान भेजा, कहीं शक्तिशाली विस्फोट कराये, कुछ को जमीन में धंसा दिया, और कुछ को डूबा दिया। यह ईश्वर नहीं था जिसने उन पर ज़ुल्म किया, बल्कि उन्होंने खुद अपने ऊपर ज़ुल्म किया।” (क़ुरआन 29:40)
सभी को पूरी तरह पता होना चाहिए कि भूकंप, ज्वालामुखी, तूफान, सूखा और प्रकृति के अन्य कार्य संयोग नहीं हैं, बल्कि ईश्वर की ओर से उन लोगों के लिए दंड है जो अविश्वासी हैं और/या बहुत पापी हैं (और पश्चाताप नहीं करते हैं)। ये सब ऐसी निशानियां है जिस से लोगों को ईश्वर पर विश्वास करना चाहिए और उसकी पुकार का जवाब देना चाहिए। "और नास्तिकों पे उनके बुरे कर्मो की वजह से विपत्तियां आती रहेंगी, जब तक कि ईश्वर का वादा पूरा नहीं हो जाता। वास्तव में ईश्वर अपना वादा हमेशा पूरा करता है।" (क़ुरआन 13:31) इसके विपरीत, यदि सभी मानवजाति ईश्वर और उसके सभी पैगंबरो पर विश्वास करती तो शायद कोई प्राकृतिक आपदा नहीं आती, इसके बजाय उपयुक्त वर्षा, फल, सब्जियों और फसलों के रूप में अधिक आशीर्वाद मिलता। "और यदि लोग विश्वास करते और ईश्वर से डरते, तो हम (ईश्वर) उन पर आकाश और धरती की सम्पन्नता के द्वार खोल देते।" (क़ुरआन 7:96)
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