ईश्वर अल-मुजीब है - प्रार्थनाओं का उत्तर देना वाला
विवरण: ईश्वर के खूबसूरत नामों मे से एक नाम अल-मुजीब की व्याख्या, जो हममें आशा जगाती है और हमें सुकून देती है और हमें एहसास कराती है कि हम अकेले नहीं हैं।
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- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 03 Jan 2022
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ईश्वर का यह नाम क़ुरआन के निम्नलिखित छंद मे है: "उससे क्षमा मांगो और उसी की ओर ध्यानमग्न हो जाओ। वास्तव में मेरा पालनहार समीप है और (प्रार्थनाएं) स्वीकार करने वाला है।" (क़ुरआन 11:61)
ईश्वर उन लोगों की प्रार्थनाओं का उत्तर देता है जो उससे याचना करते हैं। वह उन लोगों को राहत देता है जो उसकी शरण में आते हैं और वह उनके डर को शांत करता है। यहां तक कि ईश्वर अविश्वासियों और बहके हुए लोगों की प्रार्थनाओं का भी उत्तर देता है जब वे निराशा में उसे पुकारते हैं:
वही है, जो जल और धरती पर तुम्हें फिराता है। फिर जब तुम नौकाओं में होते हो और नौकाऐं सवारों को लेकर अनुकूल वायु के कारण चलती हैं और वे उससे प्रसन्न होते हैं, तो अकस्मात् प्रचन्ड वायु का झोंका आ जाता है और प्रत्येक स्थान से उन्हें लहरें मारने लगती हैं और समझते हैं कि उन्हें घेर लिया गया है, तो ईश्वर की आज्ञाकारिता में उनके प्रति ईमानदार होते हुए प्रार्थना करते हैं कि: "यदि तूने हमें बचा लिया, तो हम अवश्य तेरे कृतज्ञ बनकर रहेंगे!" फिर जब ईश्वर उन्हें बचा लेता है, तो अकस्मात् धरती पर अवैध विद्रोह करने लगते हैं। (क़ुरआन 10:22-23)
ईश्वर ने नूह (उन पर शांति हो) को उसके संकट में उत्तर दिया, जब ईश्वर पापी लोगों को बाढ़ में डूबा रहा था तब उसने नूह और उसके अनुयायियों को बड़ी नाव में बचा लिया: "नूह़ ने हमें पुकारा, तो हम क्या ही अच्छे प्रार्थना स्वीकार करने वाले हैं।" (क़ुरआन 37:75)
ईश्वर ने अय्यूब (उन पर शांति हो) की प्रार्थनाओं का उत्तर दिया: "अय्यूब को याद करो, जब उसने पुकारा अपने पालनहार को कि मुझे रोग लग गया है और तू सबसे अधिक दयावान् है। तो हमने उसकी गुहार सुन ली और दूर कर दिया जो दुःख उसे था और प्रदान कर दिया उसे उसका परिवार तथा उतने ही और उनके साथ, अपनी विशेष दया से तथा उपासकों की शिक्षा के लिए।" (क़ुरआन 21:83-84)
ईश्वर ने यूनुस (उन पर शांति हो) की प्रार्थनाओं का उत्तर दिया जब उन्होंने व्हेल (मछली) के पेट में से पुकारा: "यूनुस को याद करो, जब वो चला गया क्रोधित होकर और सोचा कि हम उसे पकड़ेंगे नहीं, अन्ततः, उसने पुकारा अन्धेरे में कि 'नहीं है कोई पूज्य तेरे सिवा, तू पवित्र है, वास्तव में मैं ही दोषी हूं।' तब हमने उसकी पुकार सुन ली तथा मुक्त कर दिया शोक से और इसी प्रकार हम बचा लिया करते हैं विश्वासियों को।" (क़ुरआन 21:87-88)
इसी तरह, ईश्वर ने इब्राहीम, ज़कारिया, याहया, यीशु, और वास्तव में सभी पैगंबरो और दूतों की प्रार्थनाओं का उत्तर दिया (उन सभी पर शांति हो)। उन्होंने अत्यंत विनम्रता और ईमानदारी से अपने ईश्वर से प्रार्थना की, इसलिए ईश्वर ने अपनी असीम कृपा में उनकी रक्षा की, उनका मार्गदर्शन किया, उनको सम्मान दिलाया और उनकी प्रार्थनाओं को स्वीकार किया।
ईश्वर उन लोगों की प्रार्थनाओं का उत्तर देता है जो उनसे विनती करते हैं और उनमे अपनी आशाएं रखते हैं। सभी प्रार्थनाएं और मिन्नतें सिर्फ ईश्वर से ही की जानी चाहिए।
"और तुम्हारा पालनहार कहता है: 'मुझे पुकारो; मैं तुम्हारी प्रार्थनाओं का उत्तर दूंगा।' लेकिन जो लोग अहंकार करेंगे मुझसे प्रार्थना करने के लिए वे निश्चित रूप से खुद को नरक में - अपमान में पाएंगे!" (क़ुरआन 40:60)
ईश्वर ने हमें प्रार्थना करने का आदेश दिया है और उसने हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देने का वादा किया है। यही कारण है कि उमर कहा करते थे: "मुझे चिंता नहीं है कि मेरी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया जाएगा, बल्कि मुझे अपनी प्रार्थनाओं की ही चिंता है।"
दूसरे शब्दों मे कहें तो, जब किसी व्यक्ति को ईश्वर से प्रार्थना करने का सौभाग्य मिलता है, तो यह सौभाग्य ही उसका लाभ है। और अगर प्रार्थना के जवाब की बात करें, तो यह ऐसी चीज है जिसका वादा पहले ही किया जा चूका है।
ईश्वर ही है जो हमारे संकटों को दूर करता है। वह हमें याद दिलाता है: "ईश्वर ही उससे तथा प्रत्येक आपदा से तुम्हें बचाता है, लेकिन फिर भी तुम उसका साझी बनाते हो।" (क़ुरआन 6:64)
ईश्वर से प्रार्थना करना विपत्तियों और कठिनाइयों को दूर करने और आशीर्वाद और अवसर प्राप्त करने का एक साधन हैं। हालांकि, इन वांछित परिणामो के लिए याचना ही एकमात्र साधन नहीं है। ऐसे अन्य साधन भी हैं जिन्हें जानने की आवश्यकता है, जैसे प्राकृतिक कारण और प्रभाव संबंध।
ईश्वर अपनी बुद्धि से जानता है कि सबसे अच्छा क्या है। उन्होंने हमारी प्रार्थनाओं को हमारे जीवन को प्रभावित करने वाला प्रभाव बना दिया है, और ईश्वर ने हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर देने का वादा किया है। इसका मतलब यह है कि कभी-कभी वह हमें ठीक वही देता है जो हम मांगते हैं। और कई बार इसके बदले वह एक ऐसी विपदा को हम पर आने से रोक लेता है जिसका आना हमारे नसीब में होता है। इसके अलावा, वह प्रार्थना का उत्तर पुनरुत्थान के दिन तक के लिए रोक लेता है, और उस दिन हमें हमारे फैसले के लिए आशीर्वाद देकर पुरस्कृत करता है, और हिसाब-किताब के समय इसको हमारे पक्ष मे करता है। यह उन सभी के लिए गारंटी है जो ईमानदारी और भक्ति के साथ ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। जहां तक इस संसार में हमारी प्रार्थनाओं के उत्तर मिलने की बात है, तो आमतौर पर ऐसा ही होता है।
जब हम पैगंबरों के जीवन के बारे में पढ़ते हैं, तो हम ऐसे कई मामले देखते हैं जहां ईश्वर ने उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया। पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) ने अपने कई साथियों की ओर से ईश्वर से प्रार्थना की। उन्होंने इब्न अब्बास के बारे में ईश्वर से प्रार्थना की: "हे ईश्वर! उसे धर्म के बारे में अच्छा जानकार बना।" उन्होंने प्रार्थना की कि अनस इब्न मलिक की उम्र लंबी हो और कई बच्चे हों। उन्होंने प्रार्थना की कि उमर इब्न अल-खत्ताब इस्लाम को अपनाए और अपनी ताकत मुस्लिम समुदाय में जोड़ दे। उन्होंने कई जनजातियों की ओर से ईश्वर से प्रार्थना की, और उन्होंने अपने जीवन में सभी मुसलमानों के लिए ईश्वर से प्रार्थना की।
ईश्वर ने लोगों की प्रार्थनाओं का उत्तर कैसे दिया इसके बारे में हमें अतीत और वर्तमान के कई विवरण मिलते हैं। जहां भी लोग ईश्वर में विश्वास करते हैं, भले ही वे पापी हों और अपनी धार्मिक समझ में गुमराह हों, हम उनसे सुनेंगे कि कैसे ईश्वर ने उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया और उनके दुखों को दूर किया। यह एक ऐसी चीज है जिसे नकारा नहीं जा सकता, ईश्वर के अस्तित्व और उसकी दया को प्रमाणित करने वाला ये एक और प्रमाण है। यही कारण है कि जब कोई बड़ी विपदा या विपत्ति आती है, तो शायद ही कोई ऐसा होगा जो अपने संकट को दूर करने के लिए ईश्वर से प्रार्थना न करे।
ईश्वर के इस नाम को जानने का लाभ
यह जानना कि ईश्वर प्रार्थनाओं का उत्तर देने वाला है, उन लोगों के लिए एक सांत्वना और शक्ति का स्रोत है जिनके पास ईश्वर से मांगने के सिवा कोई अन्य आशा या सहारा नही है। उस समय, वे सच्चे और समर्पित हृदय से ईश्वर से प्रार्थना करते हैं, इसलिए ईश्वर जल्दी से उनके संकट और कष्टों को दूर करते हैं।
ऐसा ही अनुभव होता है उन लोगों का जो बिना किसी मदद के जेल में बंद हैं। ऐसा ही अनुभव होता है जंगल में अकेले खोए हुए व्यक्ति का। ऐसा ही अनुभव होता है उस नाविक का जिसका जहाज प्रचंड आंधी में समुद्र में फसा होता है। ऐसा ही अनुभव होता है गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति का जिसके लिए डॉक्टरों ने उम्मीद छोड़ दी है और जो ईश्वर से प्रार्थना करके ठीक हो जाते हैं। ऐसा ही अनुभव है उत्पीड़ित का जो ताकतवर द्वारा सताया जाता है, जिनकी प्रार्थनाओं के बारे में ईश्वर कहता है: "मै अपनी ताकत और महिमा से तुम्हें जीत दूंगा, हालांकि हो सकता है यह कुछ समय के बाद हो।" [1]
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