ईश्वर की रचना में हमारा छोटा सा स्थान
विवरण: ईश्वर की विस्मयकारी रचना हमें विनम्र बनाती है और हमें उसे पहचानने और उसकी प्रशंसा करने के लिए मजबूर करती है।
- द्वारा islamtoday.net
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
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लोग कभी-कभी खुद को सर्व-महत्वपूर्ण समझने लगते हैं, हर तरफ तिरस्कार से देखते हैं, अपनी छाती चौड़ी कर के घूमते हैं। लेकिन अगर वे केवल इन महान और विस्मयकारी रचनाओं को अपने आसपास देखें, यह उन्हें नम्रता की भावना देगा और वे अपने ईश्वर के सामने विनम्र हो जाएंगे।
सोचने की बातें
1. गर्भधारण के समय योनि मार्ग से पांच से छह सौ लाख शुक्राणु कोशिकाएं गुजरती हैं, जिनमें से प्रत्येक में अंडे को निषेचित करने और मानव बनाने की क्षमता होती है। लेकिन ईश्वर अपने ज्ञान से अंडे को निषेचित करने के लिए उन सभी लाखों में से एक को चुनता है, और ईश्वर की अनुमति से यह एक पूर्ण मानव बनता है, एक ऐसा प्राणी जो ईश्वर की कृपा से तर्क करने और उसके कार्यों को न मानने की क्षमता रखता है।
हम सभी इस तरह बनाए गए थे, इसलिए हमें अपने ईश्वर की महानता और भव्यता को स्वीकार करते हुए उसके प्रति विनम्र होना चाहिए। हमें अपनी क्षुद्र शुरुआत को याद रखना चाहिए ताकि हम उस विशाल अंतर की सराहना कर सकें कि जब हम उस मिश्रित तरल पदार्थ की एक छोटी बूंद से पैदा हुए और आज हम एक पूर्ण निर्मित मनुष्य हैं। इसलिए हमें ईश्वर की प्रशंसा, हर समय उसकी मौजूदगी का अहसास और उसका धन्यवाद करना चाहिए।
2. मानव शरीर में एक सौ ट्रिलियन से अधिक कोशिकाएं हैं। इनमें से प्रत्येक कोशिका के अंदर ऑर्गेनेल, सिस्टम, जटिल प्रक्रियाएं और सूचनाओं के विशाल भंडार होते हैं। कोशिका का प्रत्येक विवरण एक अनुकरणीय तरीके से कोशिका में अपनी भूमिका निभाता है और ईश्वर की महिमा की याद दिलाता है।
प्रत्येक कोशिका के नुक्लियस में लगभग 31 बिलियन न्यूक्लियोटाइड होते हैं - डीएनए अणु पर चार आणविक "अक्षर" जो जीवित जीव के आनुवंशिक लक्षणों को बताते हैं और इसके कार्यों को नियंत्रित करते हैं। यह वह जानकारी है जो एक जीव को अपने माता और पिता से विरासत में मिलती है।
हमारे डीएनए को बनाने वाले आणविक "अक्षरों" की यह विशाल संख्या हमारे शरीर के सौ ट्रिलियन कोशिकाओं में से प्रत्येक में दोहराई जाती है। इनमें से प्रत्येक अक्षर ईश्वर की महानता को प्रमाणित करता है जिन्होंने उसे बनाया है।
3. जब हम रात में आकाश को देखते हैं, तो हम अंतरिक्ष की विशालता और हमारे ऊपर स्थित अरबों आकाशगंगाओं को देखते हैं। प्रत्येक आकाशगंगा अरबों तारों का समूह है, और ये सभी तारे अपने जीवन-चक्र के विभिन्न चरणों में हैं। कुछ बनने की प्रक्रिया में हैं। कुछ युवा हैं, अन्य परिपक्व हैं, जबकि अन्य मृत्यु के कगार पर हैं। इनमें से प्रत्येक तारा उस अंतरिक्ष में ईश्वर की महिमा करता है जिसकी विशालता दिमाग को चकरा देती है। केवल ईश्वर ही ब्रह्मांड की पूर्ण सीमा को जानता है। यदि हम एक अंतरिक्ष यान की कल्पना करें जो प्रकाश की गति से 186 हजार मील प्रति सेकंड की गति से यात्रा करने में सक्षम है, तो उस अंतरिक्ष यान को सिर्फ एक आकाशगंगा को पार करने में हजारों साल लगेंगे, उसके आगे कि बात तो छोड़ ही दें।
ईश्वर कहता है:
"तो मै शपथ लेता हूं उसकी, जो तुम देखते हो तथा जो तुम नहीं देखते हो।" (क़ुरआन 69:38-39)
ईश्वर यह भी कहता है:
"मै शपथ लेता हूं सितारों के स्थानों की, और ये निश्चय ही एक बड़ी शपथ है, यदि तुम समझो।" (क़ुरआन 56:75-76)
किसी भी आकाशगंगा में 100 लाख से लेकर एक अरब तक तारे हो सकते हैं, और हर दिन वैज्ञानिक बाहरी अंतरिक्ष के बारे में कुछ नया खोज रहे हैं। इस समय विज्ञान के लिए उपलब्ध अवलोकन के साधन अभी भी काफी सीमित हैं। हम मनुष्यों को ईश्वर की रचनाओं मे उसकी महानता को देखना चाहिए और स्वयं को दीनता से देखना चाहिए।
प्राकृतिक दुनिया एक खुली किताब है जो ईश्वर की प्रशंसा का गुणगान करती है।
"उसकी पवित्रता का वर्णन कर रहे हैं सातों आकाश तथा धरती और जो कुछ उनमें है और नहीं है कोई चीज़ परन्तु वह उसकी प्रशंसा के साथ उसकी पवित्रता का वर्णन कर रही है, किन्तु तुम उनके पवित्रता के गान को समझते नहीं हो।"(क़ुरआन 17:44)
ईश्वर यह भी कहता है:
"क्या आप नहीं जानते कि ईश्वर को ही झुक के पूजा करते हैं, जो आकाशों तथा धरती में हैं, सूर्य और चांद, तारे और पर्वत, वृक्ष और पशु, बहुत-से मनुष्य और बहुत-से वे भी हैं जिनपर यातना सिध्द हो चुकी है। और जिसे ईश्वर अपमानित कर दे, उसे कोई सम्मान देने वाला नहीं है। निःसंदेह ईश्वर वो करता है जो वो चाहता है।" (क़ुरआन 22:18)
ब्रह्मांड की सारी सुंदरता और वैभव जो हम देख सकते हैं, वह निर्माता की कारीगरी की एक छोटी सी झलक है।
जब एक आस्तिक ईश्वर की रचना पर चिंतन करता है, तो यह ईश्वर की महानता और उनकी अपार बुद्धि को बताता है। यह विश्वास करने वाले के दिल में शांति लाता है और एक आस्तिक के विश्वास को मजबूत करता है।
ईश्वर कहता है:
"वस्तुतः आकाशों तथा धरती की रचना और रात्रि तथा दिन का एक के बाद एक आना जाना, समझदारो के लिए बहुत सी निशानियां है। जो खड़े, बैठे तथा सोए हुए ईश्वर को याद करते और आकाशों और धरती की रचना में विचार करते रहते हैं, वो कहते हैं: ऐ हमारे पालनहार! तूने ये सब व्यर्थ नहीं रचा है। हमें अग्नि के दण्ड से बचा ले।" (क़ुरआन 3:190-191)
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