स्वर्ग में प्रवेश करने वाला अंतिम व्यक्ति (2 का भाग 1): और एक पेड़ खड़ा किया जाएगा
विवरण: जब अंतिम व्यक्ति नर्क से बाहर आएगा और स्वर्ग में प्रवेश करेगा तो नर्क का द्वार हमेशा के लिए बंद हो जाएगा।
- द्वारा Aisha Stacey (© 2013 IslamReligion.com)
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
- मुद्रित: 0
- देखा गया: 7,656
- द्वारा रेटेड: 0
- ईमेल किया गया: 0
- पर टिप्पणी की है: 0
स्वर्ग वह अविश्वसनीय इनाम है जिसे ईश्वर ने विश्वासियों (ईमान वालों) के लिए बनाया है; उनके लिए जो ईश्वर की आज्ञा मानते हैं। यह पूर्ण आनंद और शांति का स्थान है और अस्तित्व में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो इसे परेशान कर सके। यह हमेशा के लिए चलेगा और हम आशा करते हैं कि यह हमारा शाश्वत घर होगा। ईश्वर और उनके पैगंबर मुहम्मद ने हमें स्वर्ग के बारे में जो बताया है वह अकल्पनीय लगता है और हमारे दिमाग को घुमा देता है। पैगंबर मुहम्मद की परंपराओं में से एक के अनुसार, ईश्वर कहता है, "मैंने अपने धर्मी दासों के लिए ऐसा बनाया है, जिसे न तो किसी आंख ने देखा है, न किसी के कान ने सुना है और न ही किसी इंसान के दिमाग ने सोचा है।"[1]हम, विनम्र मनुष्य इसी की प्रतीक्षा कर रहे हैं, और यदि हम बुद्धिमान हैं और इसके लिए काम करते हैं, तो यह इस क्षणिक जीवन के संघर्ष का प्रतिफल है। हम अपने शाश्वत निवास के बारे में सोचते हैं और अपने आप से सवाल पूछते हैं, हम आशा के साथ स्वर्ग और डर के साथ नर्क के बारे में सोचते हैं, लेकिन हमारा दिल जितना कांपता है, स्वर्ग का ख्याल उतना ही आनंद देता है।
पैगंबर मुहम्मद की परंपराओं में स्वर्ग और नर्क के विवरण में इस बारे में वर्णन शामिल हैं कि स्वर्ग में प्रवेश करने वाला पहला व्यक्ति कौन होगा। न्याय के महान दिन, वह व्यक्ति पैगंबर मुहम्मद होंगे। उन्होंने अपने साथियों से कहा कि वह "स्वर्ग के द्वारों पर दस्तक देने वाले पहले व्यक्ति होंगे।" [2] पैगंबर मुहम्मद ने यह भी कहा: "मैं स्वर्ग के द्वार पर आऊंगा और उन्हें खोलने के लिए कहूँगा। द्वारपाल पूछेगा, "आप कौन हो?" मैं कहूंगा, "मुहम्मद।" द्वारपाल कहेगा "मुझे आदेश दिया गया था कि मैं आपसे पहले किसी और के लिए द्वार न खोलूं।"[3]
पैगंबर मुहम्मद पहले प्रवेश करेंगे, यह एक अच्छा योग्य आशीर्वाद है। हमारे दिमाग में इस महान सम्मान के कारणों को समझना आसान हो जाता है, लेकिन कुछ समय बाद हम यह सोचना शुरू कर देते हैं कि स्वर्ग में प्रवेश करने वाला अंतिम व्यक्ति कौन होगा? क्योंकि एक अंतिम व्यक्ति प्रवेश करेगा और फिर द्वार बंद कर दिया जायेगा। पैगंबर मुहम्मद के साथी भी स्वर्ग के बारे में ठीक ऐसा ही सोचते थे जैसे हम सोचते हैं। हालाँकि उन्हें अपने प्रिय पैगंबर से यह पूछने का अद्भुत सौभाग्य मिला कि स्वर्ग में प्रवेश करने वाला अंतिम व्यक्ति कौन होगा?
जैसा कि हम जानते हैं कि पैगंबर मुहम्मद की परंपराएं विभिन्न रूपों में हमारे पास आई हैं और इनमें से एक हदीस कुदसी या पवित्र हदीस है। ये परंपराएं विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं क्योंकि शब्द पैगंबर मुहम्मद का है, इसका अर्थ पूरी तरह से ईश्वर से है। यह एक प्रकार का रहस्योद्घाटन है। ये परंपराएं मानवजाति के लिए ईश्वर के संदेश का एक और आयाम बनाती हैं और आमतौर पर आध्यात्मिक या नैतिक विषयों से संबंधित होती हैं। साथियों द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर हदीस क़ुदसी में निहित है और यह सभी परंपराओं में सबसे सुंदर और व्यापक है। इस परंपरा का अनुवाद निम्नलिखित है।
स्वर्ग में प्रवेश करने वाला अंतिम व्यक्ति वह व्यक्ति होगा जो एक बार चलेगा, एक बार ठोकर खाएगा और एक बार आग से जलेगा। एक बार जब वह इसे पार कर लेगा, तो वह उसकी तरफ घूमेगा और यह कहेगा, 'धन्य हो वो जिसने मुझे तुझसे बचाया है। ईश्वर ने मुझे कुछ दिया है जो उसने पहले और आखिरी को नहीं दिया है।'
तब उसके लिए एक वृक्ष खड़ा किया जाएगा, और वह कहेगा, हे मेरे ईश्वर, मुझे इस वृक्ष के समीप ले जा कि मैं इसकी छाया में शरण पाऊं, और इसका जल पीऊं। ईश्वर कहेगा, 'हे आदम के बेटे, शायद अगर मैं तुम्हें यह अनुदान दूं, तो तुम मुझसे कुछ और मांगोगे?' वह कहेगा, 'नहीं, हे ईश्वर', और वह वादा करेगा कि वह उससे और कुछ नहीं मांगेगा, और उसका ईश्वर उसे क्षमा कर देगा क्योंकि उसने कुछ ऐसा देखा है, जिसका इंतजार करने के लिए उसके पास धैर्य नहीं है। तब वह उसके समीप लाया जाएगा, और उसकी छांव में शरण लेगा, और उसका जल पीएगा।
तब उसके लिए एक और पेड़ खड़ा किया जाएगा जो पहले से अधिक सुंदर है, और वह कहेगा, 'हे मेरे ईश्वर, मुझे इस पेड़ के करीब ले जाओ, ताकि मैं इसका पानी पी सकूं और इसकी छाया में आराम कर सकूं, और मैं इसके अलावा और कुछ न मांगूंगा।' ईश्वर कहेगा, 'ऐ आदम की सन्तान क्या तूने मुझसे यह वादा नहीं किया था कि तू मुझसे और कुछ नहीं माँगेगा?' ईश्वर कहेगा, 'शायद अगर मैं तुम्हें इसके पास लाऊं तो तू मुझसे कुछ और मांगेगा।' वह वादा करेगा कि वह उससे कुछ और नहीं मांगेगा, और उसका ईश्वर उसे माफ कर देगा क्योंकि उसने कुछ ऐसा देखा है जिसका इंतजार करने के लिए उसके पास धैर्य नहीं है। तब वह उसके समीप लाया जाएगा, और उसकी छांव में शरण लेगा, और उसका जल पीएगा।
फिर उसके लिए जन्नत के द्वार पर एक और पेड़ खड़ा किया जाएगा जो पहले दोनों से भी ज्यादा खूबसूरत होगा, और वह कहेगा, 'हे मेरे ईश्वर, मुझे इस पेड़ के करीब ले आओ ताकि मैं इसकी छाया में आराम कर सकूं और इसका पानी पी सकूं, और मैं तुझ से और कुछ नहीं मांगूंगा।' ईश्वर कहेगा, 'हे आदम के पुत्र, क्या तूने मुझ से यह वादा नहीं किया था कि तू मुझसे और कुछ नहीं मांगेगा?' वह कहेगा, 'हाँ, मेरे ईश्वर, मैं तुमसे और कुछ नहीं मांगूंगा।' उसका ईश्वर उसे क्षमा कर देगा क्योंकि उसने कुछ ऐसा देखा है जिसका इंतजार करने के लिए उसके पास धैर्य नहीं है। वह उसके निकट लाया जाएगा, और जब वह उसके निकट आएगा, तो वह स्वर्ग के लोगों की आवाज सुनेगा और कहेगा, 'हे ईश्वर, मुझे उसमें प्रवेश दे।' ईश्वर कहेगा: 'हे आदम के पुत्र, ऐसा क्या है जिससे तू मांगना बंद कर देगा? यदि मैं तुम्हें संसार और उतना ही और दे दूं तो क्या यह तुम्हें प्रसन्न करेगा?' वह कहेगा, 'हे प्रभु, क्या तुम मेरा मजाक उड़ा रहे हो, जब आप ही संसार के स्वामी हो?'
इब्न मसूद (इस सुंदर कथा को सुनाने वाले साथी) मुस्कुराये और कहा: तुम लोग मुझसे क्यों नहीं पूछते कि मैं क्यों मुस्कुरा रहा हूँ? उन्होंने पूछा: आप क्यों मुस्कुरा रहे हो? उन्होंने कहा: इसी तरह ईश्वर के दूत (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) भी मुस्कुराये थे और पैगंबर के आसपास के साथियों ने पूछा: आप क्यों मुस्कुरा रहे हैं ईश्वर के दूत? उन्होंने कहा: "क्योंकि दुनिया का ईश्वर मुस्कुराएगा जब वह आदमी कहेगा, 'क्या तुम मेरा मज़ाक उड़ा रहे हो, जब आप ही दुनिया के ईश्वर हो?' और ईश्वर कहेगा: 'मैं तुम्हारा मज़ाक नहीं उड़ा रहा हूँ, लेकिन मैं जो कुछ भी चाहता हूं वह करने में सक्षम हूं।'”[4]
भाग दो में हम चर्चा करेंगे कि इस हदीस में ईश्वर की दया और कृपा का कैसे दिखाया गया है और देखेंगे कि सभी दुनिया के ईश्वर अपनी रचना को कितनी अच्छी तरह जानते और समझते हैं।
स्वर्ग में प्रवेश करने वाला अंतिम व्यक्ति (2 का भाग 2): बस थोड़ा सा और
विवरण: स्वर्ग में प्रवेश करने वाला अंतिम व्यक्ति और उसके जैसे अन्य लोग ईश्वर की दया का पूरा प्रभाव महसूस करेंगे।
- द्वारा Aisha Stacey (© 2013 IslamReligion.com)
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
- मुद्रित: 0
- देखा गया: 6,854
- द्वारा रेटेड: 0
- ईमेल किया गया: 0
- पर टिप्पणी की है: 0
पिछले लेख में हमने पैगंबर मुहम्मद की एक व्यापक परंपरा को पढ़ा था। यह मनुष्य की प्रकृति के बारे में एक छोटी कहानी है, जो स्वर्ग में प्रवेश करने वाले अंतिम व्यक्ति के बारे में एक कथा के रूप में आती है। वह एक ऐसा व्यक्ति था, जो ईश्वर की अनुमति से नर्क की आग से बाहर निकला था। पहले तो आदमी स्वर्ग और नर्क के बीच की जगह में रहने के लिए आभारी था और ईश्वर को उनकी दया और कृपा के लिए धन्यवाद दिया। हालाँकि कुछ समय बीत गया और उसने महसूस किया कि एक पेड़ ऊपर खड़ा हुआ था। उसने इसके मजबूत तने, मजबूत शाखाओं, टहनियों और पत्तियों को देखा और इसकी छाया के नीचे रहने और इसके जल स्रोत से अपनी प्यास बुझाने की लालसा की। जैसा कि कथा जारी है, हम देखते हैं कि हर बार जब ईश्वर मनुष्य को वह देता है जो वह चाहता है, तो मनुष्य कुछ और मांगता है; बस थोड़ा सा और।
यह कहानी इस तथ्य पर प्रकाश डालती है कि मनुष्य लगभग कभी भी पूरी तरह से संतुष्ट नहीं होता है, वह हमेशा कुछ और चाहता है। यद्यपि यह किसी ऐसे व्यक्ति के लिए एक आश्चर्य हो सकता है जिसने चाहतों, जरूरतों और इच्छाओं के उस चक्र के बारे में कभी नहीं सोचा है, जिसमें हम में से कुछ लोग हैं, यह ईश्वर के लिए नया नहीं है। वह, ब्रह्मांड के निर्माता और पालनकर्ता हैं, जो अपने प्राणियों के स्वाभाव को अच्छी तरह से जनता है।
ईश्वर निर्माता है और उसके पास पूर्ण ज्ञान है। वह सब जानता है जो है और जो होने वाला है; वह जानता है कि क्या हो रहा है और क्या होगा। वह सब सुननेवाला सर्वज्ञ है। ईश्वर ने कहा है कि वह हमारे अपने गले की नस से ज्यादा करीब है, उसके ज्ञान से कुछ भी नहीं बचता है। हम अपने साथियों और परिवार से अपने बुरे गुणों और कामो को छिपा सकते हैं लेकिन ईश्वर सब कुछ देखता है; इतना ही नहीं, वह समझता है कि हमें क्या प्रेरित करता है और हम क्यों डरते हैं, प्यार या इच्छा। और यही कारण है कि वह लगातार क्षमा कर रहा है और हम पर अपनी दया कर रहा है। जब हमें ईश्वर की दया की आवश्यकता होती है चाहे कैसी भी स्थिति हो, हमें सिर्फ उससे मांगना होता है।
"जबकि हमने ही पैदा किया है मनुष्य को और हम जानते हैं जो विचार आते हैं उसके मन में तथा हम अधिक समीप हैं उससे उसकी प्राणनाड़ी से।" (क़ुरआन 50:16)
शब्दकोश दया को दयालु और क्षमाशील होने के स्वभाव और करुणा को प्रेरित करने वाली भावना के रूप में परिभाषित करता है। दया के लिए अरबी शब्द रहमा है और ईश्वर के दो सबसे महत्वपूर्ण नाम इस शब्द से निकले हैं, अर-रहमान - सबसे कृपालु और अर-रहीम - सबसे दयालु। ईश्वर की दया वह ईथर गुण है जो नम्रता, देखभाल, विचार, प्रेम और क्षमा का प्रतीक है। जब हम ये गुण इस दुनिया में देखते हैं, तो ये ईश्वर की रचना के प्रति ईश्वर की दया का एक मात्र प्रतिबिंब हैं। इस कहानी में हम ईश्वर की दया को उस सौम्य तरीके से प्रकट होते हुए देख सकते हैं जब वह नर्क की आग से बाहर निकलने के बाद उस अंतिम व्यक्ति के साथ व्यवहार करते हैं।
इस जगह यह ध्यान देने योग्य है कि इस आदमी ने अपने अच्छे कर्मों के माध्यम से स्वर्ग में प्रवेश नहीं किया, इसके बिलकुल विपरीत, अंत में उसने ईश्वर की दया से स्वर्ग में प्रवेश किया। यह कहा जा सकता है कि ईश्वर अपनी दया प्रदान करता है, भले ही वह मानवीय दृष्टि में वह योग्य न हो। ईश्वर ने वास्तव में वादा किया है कि जिस किसी के दिल में सच्चा विश्वास है, भले ही उसने कई पाप किए हों, वह एक दिन स्वर्ग में जायेगा। इसे और सही से समझने के लिए पैगंबर मुहम्मद ने हमें निम्नलिखित बताया है:
"जो कोई शिर्क (ईश्वर के साथ किसी को साझा करना) किए बिना मर जायेगा, वह स्वर्ग में प्रवेश करेगा।"[1]
तथ्य यह है कि जिस व्यक्ति की चर्चा हो रही है उसको ले के कई लोगों को नर्क से बाहर निकाला जाएगा और स्वर्ग में लाया जाएगा, इन धन्य लोगों को कोई दुःख या संकट नहीं होगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि ईश्वर हमें बताता है कि स्वर्ग आनंद का निवास है। क़ुरआन या पैगंबर मुहम्मद की परंपराओं में ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह सुझाव दे कि स्वर्ग में जाने के बाद ये लोग उस सजा के कारण पछताएंगे जो उन्होंने नरक में अनुभव की थी। यह मनुष्य की ख़ुशी और आनंद से स्पष्ट होता है, जब उसने खुद को स्वर्ग और नर्क के बीच की जगह में पाया। ऐसा लगता है कि वह तुरंत ठीक हो गया है और पहले से ही भविष्य की ओर देख रहा है। पैगंबर मुहम्मद की अन्य परंपराओं से हम जानते हैं कि स्वर्ग मुसलमानों को इस दुनिया में सामना करने वाली सभी कठिनाइयों को भुला देगा, इस प्रकार यह कहना गलत नहीं है कि स्वर्ग में प्रवेश से पहले नर्क में अनुभव की गई कठिनाइयाँ भी शामिल हैं। ईश्वर के दूत (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) ने कहा:
"इस दुनिया में सबसे अमीर लोगों में से, जो नर्क में जाएंगे, उन्हें पुनरुत्थान के दिन लाया जाएगा और एक बार आग में डुबोया जाएगा। तब कहा जाएगा: हे आदम के पुत्र, क्या तुमने कभी कुछ अच्छा देखा? क्या तुम्हे कभी कोई सुख मिला? वह कहेगा: ईश्वर की कसम नहीं। फिर इस दुनिया में सबसे बेसहारा लोगों में से जो स्वर्ग में प्रवेश करेंगे, उन्हें एक बार जन्नत में डुबोया जाएगा, और उनसे कहा जाएगा: ऐ आदम के पुत्र, क्या तुमने कभी कुछ बुरा देखा? क्या तुमने कभी किसी कठिनाई का अनुभव किया है? वह कहेगा: ईश्वर की कसम नहीं, मैंने कभी कुछ बुरा नहीं देखा और न ही मैंने कभी किसी कठिनाई का अनुभव किया।"[2]
यह एक और संकेत है कि स्वर्ग के आनंद में डुबकी लगाने के बाद वह पहले की सभी कठिनायों को भूल जायेगा, यहाँ तक कि नर्क में दंडित होने की कठिनाई भी। पैगंबर कहते है: "जो कोई स्वर्ग में प्रवेश करेगा वह सुख का आनंद लेगा और दुखी नहीं होगा, उसका ना तो वस्त्र पुराने होंगे और ना उसकी जवानी कभी खत्म होगी।”[3]
यह आशीर्वाद दर्शाता है कि स्वर्ग में प्रवेश करने वाले के सभी दुख मिट जायेंगे, और यह अर्थ में सामान्य है और इसमें प्रवेश करने वाले सभी लोग शामिल हैं, चाहे वे पहले नर्क में प्रवेश कर चुके हों या नहीं।
ईश्वर की दया की कोई सीमा नहीं है। पैगंबर मुहम्मद ने यह भी कहा:
"ईश्वर के पास दया के सौ हिस्से हैं, जिनमें से एक हिस्सा उन्होंने जिन्न, मनुष्यो, जानवरों और कीड़ों के बीच डाल दिया, जिसकी वजह से वे एक दूसरे के प्रति करुणामय और दयालु हैं, और जिसके माध्यम से जंगली जानवर दयालु हैं अपनी संतान के प्रति और ईश्वर ने दया के निन्यानबे अंशों को अपने पास रखा है जिससे वह पुनरुत्थान के दिन के अपने दासों पर दया करेगा।"[4]
टिप्पणी करें