पृथ्वी का वातावरण
विवरण: आधुनिक विज्ञान ने 1400 साल पहले क़ुरआन में बताए गए वातावरण के तथ्यों की खोज की है।
- द्वारा Imam Mufti
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
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“बारिश वाले आसमान की कसम.” (क़ुरआन 86:11)
“वह जिसने जमीन को तुम्हारा फर्श और आसमान को छत बनाया…” (क़ुरआन 2:22)
पहली छंद में ईश्वर आसमान [1] और उससे 'लौटने' वाले चीज की कसम खाता है, यह बताये बिना कि वह क्या लौटाता है। इस्लामी सिद्धांत में, एक दैवीय कसम ईश्वर कि एक विशेष संबंध को दर्शाती है, और उसकी शान और सर्वोच्च सच को एक खास तरीके से दिखाती है।
दूसरा छंद ईश्वरीय कार्य को बताता है जिसने आसमान को दुनिया के लोगो के लिए 'छत' बना दिया।
आइए देखते हैं कि आधुनिक वातावरण विज्ञान आसमान की भूमिका और कार्य के बारे में क्या कहता है।
वायुमंडल एक ऐसा शब्द है जो पृथ्वी के चारों ओर, जमीन से लेकर उस किनारे तक, जहां से अंतरिक्ष शुरू होता है, सभी हवा को दर्शाता है। वायुमंडल कई परतों से बना है, प्रत्येक परत को उसके अंदर होने वाली विभिन्न घटनाओं के आधार पर परिभाषित किया गया है।
बारिश एक चीज़ है जो आसमान से बादलों द्वारा पृथ्वी पर "लौटती" है। एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका जल विज्ञान चक्र के बारे मे बताते हुए लिखता है:
“जलीय और स्थलीय दोनों वातावरण में सूरज की गर्मी की वजह से पानी भाप बन जाता है। भाप बनने और बारिश की दर सौर ऊर्जा पर निर्भर करती है, जैसा कि हवा में नमी के संचलन का पैटर्न और समुद्र की धाराओं पर होता है। वाष्पीकरण समुंद्र पर वर्षण बढ़ाती है, और यह पानी का भाप हवा द्वारा जमीन के ऊपर आ जाता है, जहां यह बारिश के जरिये जमीन पर वापस लौटता है।"[2]
वातावरण न केवल जो जमीन पर था उसे वापस जमीन पर लौटाता है बल्कि यह वापस अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है जो पृथ्वी के वनस्पतियों और जीवों को नुकसान पहुंचा सकता है, जैसे अत्यधिक गर्मी। 1990 के दशक में नासा, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ई एस ए), और जापान के अंतरिक्ष और अंतरिक्ष विज्ञान संस्थान (आई एस ए एस) के बीच सहयोग से अंतर्राष्ट्रीय सौर-स्थलीय भौतिकी (आई एस टी पी) विज्ञान की पहल हुई। ध्रुवीय, पवन और जियोटेल (उपग्रह) इस पहल का एक हिस्सा हैं, जो संसाधनों और वैज्ञानिक समुदायों को मिलाकर एक विस्तारित अवधि में सूर्य-पृथ्वी अंतरिक्ष पर्यावरण की एक साथ जांच करते हैं। इनके पास स्पष्टीकरण हैं कि कैसे वातावरण सौर ताप को अंतरिक्ष में लौटाता है।[3]
"लौटने" वाली बारिश, गर्मी और रेडियो तरंगों के अलावा वातावरण घातक ब्रह्मांडीय किरणों, सूर्य के शक्तिशाली अल्ट्रावायलेट (यूवी) रेडिएशन और यहां तक कि पृथ्वी के साथ टकराने से बने उल्कापिंडों को फ़िल्टर करके हमारे सिर के ऊपर एक छत की तरह हमारी रक्षा करता है।[4]
पेंसिल्वेनिया स्टेट पब्लिक ब्रॉडकास्टिंग हमें बताता है:
"जिस सूर्य की रोशनी को हम देख सकते हैं वह तरंगदैर्घ्य, दृश्य प्रकाश के एक समूह का प्रतिनिधित्व करती है। सूर्य से निकलने वाली अन्य तरंगदैर्घ्य मे एक्स-रे और अल्ट्रावायलेट रेडिएशन शामिल हैं। एक्स-रे और कुछ अल्ट्रावायलेट प्रकाश तरंगें पृथ्वी के वायुमंडल में उच्च अवशोषित होती हैं। ये वहां गैस की पतली परत को बहुत अधिक तापमान तक गर्म करते हैं। अल्ट्रावायलेट प्रकाश तरंगें वे किरणें हैं जिस से सूर्यदाह हो सकता है। अधिकांश अल्ट्रावायलेट प्रकाश तरंगें पृथ्वी के करीब गैस की एक मोटी परत द्वारा अवशोषित की जाती हैं जिसे ओजोन परत कहते हैं। वायुमंडल घातक अल्ट्रावायलेट और एक्स-रे को अवशोषित कर के ग्रह के चारों ओर एक सुरक्षा कवच बनाता है। एक विशाल थर्मल कंबल की तरह वातावरण की तापमान को बहुत अधिक गर्म या बहुत ठंडा होने से बचाता है। इसके अलावा वातावरण हमें उल्कापिंडों, चट्टान के टुकड़ों और धूल से भी बचाता है जो पूरे सौर मंडल में उच्च गति से चलती हैं। रात में जो हम गिरते हुए तारे देखते हैं असल में ये तारे नहीं हैं; वास्तव में ये हमारे वातावरण में अत्यधिक गर्मी के कारण जल रहे उल्कापिंड होते हैं।"[5]
एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका समतापमण्डल की भूमिका बताते हुए हमें खतरनाक अल्ट्रावायलेट रेडिएशन को अवशोषित करने में इसकी सुरक्षात्मक भूमिका के बारे में बताती है:
"ऊपरी समतापमंडलीय क्षेत्रों में सूर्य से अल्ट्रावायलेट प्रकाश का अवशोषण ऑक्सीजन अणुओं को तोड़ता है; O2 अणुओं और ऑक्सीजन परमाणुओं के ओजोन (O3) में पुनर्संयोजन से ओजोन परत बनती है, जो निचले पारिस्थितिक मण्डल को हानिकारक लघु तरंगदैर्ध्य से बचाती है... हालांकि अधिक परेशान करने वाली बात समशीतोष्ण अक्षांशों पर ओजोन की बढ़ती कमी का पता चलता है जहां दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्सा रहता है, क्योंकि ओजोन परत हमें अल्ट्रावायलेट रेडिएशन से बचाने का काम करती है, जिसे त्वचा कैंसर का कारण पाया गया है।"[6]
मध्यमण्डल वह परत है जिसमें पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते समय कई उल्कापिंड जल जाते हैं। 30,000 मील प्रति घंटे की बेसबॉल ज़िपिंग की कल्पना करें। कई उल्कापिंड इतने बड़े और तेज होते हैं। जब ये उल्कापिंड वायुमंडल में प्रवेश करते हैं तो 3000 डिग्री फ़ारेनहाइट से अधिक गर्म होते हैं और ये चमकते हैं। ये उल्कापिंड अपने सामने हवा को संकुचित करते हैं। हवा गर्म होती जाती है जिससे ये उल्कापिंड भी गर्म होते जाते हैं।[7]
यह चित्र पृथ्वी और उसके वातावरण को दिखाती है। मध्यमण्डल चित्र के सबसे ऊपर काले रंग के नीचे स्थित गहरे नीले रंग का किनारा होगा।
(छवि नासा के सौजन्य से)
पृथ्वी एक चुंबकीय बल क्षेत्र से घिरी हुई है - अंतरिक्ष में एक बुलबुला है जिसे "चुम्बकीय गोला" कहा जाता है, ये दसियों हज़ार मील चौड़ा है। चुम्बकीय गोला हमें सौर तूफानों से बचाता है। हालांकि नासा के इमेज अंतरिक्ष यान और संयुक्त नासा/यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी क्लस्टर उपग्रहों की नई टिप्पणियों के अनुसार कभी-कभी पृथ्वी के चुम्बकीय गोले में अपार दरारें बन जाती हैं और घंटों तक खुली रहती हैं। इसकी वजह से सौर हवा आगे बढ़ती है और अंतरिक्ष में तूफानी मौसम बनाती है। सौभाग्य से ये दरारें पृथ्वी की सतह को सौर हवा के संपर्क में नहीं आने देती। हमारा वातावरण हमारी रक्षा करता है भले ही हमारा चुंबकीय क्षेत्र न हो।[8]
सातवीं शताब्दी के एक रेगिस्तानी निवासी के लिए आकाश का इतना सटीक वर्णन करना कैसे संभव होगा जिसकी पुष्टि हाल की वैज्ञानिक खोजों ने की हो? इसकी एक ही वजह हो सकती है की आसमान के बनाने वाले ने इसके बारे मे बताया हो।
फुटनोट:
[1]अल-समा', इस अरबी शब्द का यहां पर मतलब 'आसमान' है जिसमे पृथ्वी का वातावरण शामिल है जैसा कि छंद 2:164 मे बताया गया है।
[2]"जैवमण्डल।" एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका प्रीमियम सर्विस से एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका।
(http://www.britannica.com/eb/article?tocId=70872)
[3](http://www-spof.gsfc.nasa.gov/stargaze/Sweather1.htm)
[4]मैनचेस्टर मेट्रोपॉलिटन यूनिवर्सिटी का वायुमंडलीय, जलवायु और पर्यावरण सूचना कार्यक्रमयहां (http://www.ace.mmu.ac.uk/eae/Atmosphere/atmosphere.html)
[5](http://www.witn.psu.edu/articles/article.phtml?article_id=255&show_id=44)
[6]"जमीन।" एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका प्रीमियम सर्विस से एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका।
(http://www.britannica.com/eb/article?tocId=54196)
[7](http://www.space.com/scienceastronomy/solarsystem/meteors-ez.html)
[8](http://www.firstscience.com/SITE/ARTICLES/magnetosphere.asp)
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