स्वर्ग और नर्क में बातचीत (3 का भाग 3): और मैं आज के बाद तुम पर कभी क्रोध न करूंगा
विवरण: परिवार के सदस्यों के साथ बातचीत, आंतरिक संवाद, और ईश्वर परलोक के लोगों के प्रति कैसे प्रतिक्रिया देगा।
- द्वारा Aisha Stacey (© 2012 IslamReligion.com)
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
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आंतरिक संवाद
जब मामला तय हो गया है, और नर्क के लोगों को दूर ले जाया गया होगा, और स्वर्ग के लोग बगीचे में प्रवेश कर चुके होंगे, तो लोगों का प्रत्येक समूह आपस में बात करेगा। वो अपने दुनिया के जीवन नहीं भूलेंगे और दोनों समूहों के पास अनंत काल है जिसमें वो पीछे मुड़कर देखेंगे और विश्लेषण करेंगे कि मैं पीड़ित क्यों हूं, या मैं इस विलासिता का हकदार क्यों हूं? मामला तय हो गया है, इस दुनिया के जीवन में जो कम समय बिताया गया था वह खत्म हो गया है और अनंत जीवन शुरू हो गया है।
ईश्वर उनसे कहेगाः तुम धरती में कितने वर्ष रहे?" वे कहेंगेः "हम एक दिन या दिन के कुछ भाग रहे। तो गणना करने वालों से पूछ लें।" वह (ईश्वर) कहेगाः "तुम नहीं रहे, परन्तु बहुत कम। क्या ही अच्छा होता कि तुमने पहले ही जान लिया होता!" (क़ुरआन 23:112-114)
हम जानते हैं कि स्वर्ग और नर्क दोनों के वासी एक-दूसरे से सवाल पूछेंगे, लेकिन वे खुद से क्या कहेंगे, उन्हें कैसा लगेगा, अकेला, वंचित और त्यागा हुआ? ईश्वर हमें बताता है कि वे भय में, हताशा में आहें भरेंगे। हमारे लिए कल्पना करना कठिन है लेकिन हम जानते हैं कि वे आशा छोड़ देंगे।।
"फिर जो भाग्यहीन होंगे, वही नर्क में होंगे, उन्हीं की उसमें चीख और पुकार होगी।" (क़ुरआन 11:106)
“…और तैयार कर रखी है, उनके लिए, दहकती अग्नि। वे सदावासी होंगे उसमें। नहीं पायेंगे कोई रक्षक और न कोई सहायक। जिस दिन उलट-पलट किये जायेंगे उनके मुख अग्नि में, वे कहेंगेः हमारे लिए क्या ही अच्छा होता कि हम कहा मानते ईश्वर का तथा कहा मानते उनके दूत का!" (क़ुरआन 33:64-66)
जब नर्क वासी इस बात पर विचार करेंगे कि जिन लोगों का उन्होंने इस दुनिया में अनुसरण किया, वे उनकी पीड़ा में उनकी मदद क्यों नहीं कर पा रहे हैं, यह हमारे लिए सीखने का एक सबक है। क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद की परंपराओं में हम अपने दिमाग की आंखों से पढ़ और देख सकते हैं कि हमारी अपनी स्थिति क्या हो सकती है।
जो लोग स्वर्ग में दाखिल होंगे, उनके लिए यह कितनी विषमता और खुशी की बात होगी। उन्हें ईश्वर को देखने का अत्यधिक आनंद मिलेगा, यह एक ऐसी चीज है जो नर्क के लोगों को नहीं मिलेगा। "निश्चय वे उस दिन अपने पालनहार के दर्शन से रोक दिये जायेंगे।" (क़ुरआन 83:15)
स्वर्ग के लोग और नर्क की आग के निवासी परिवार के सदस्यों के साथ बातचीत करते हुए
क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद की परंपराओं में ऐसे छंद कम ही हैं जो लोगों के बीच उनके शाश्वत निवास में उनके परिवार के सदस्यों के साथ बातचीत को दिखाते हैं। हालांकि यह सबूत हैं कि वे वास्तव में इस दुनिया के अपने जीवन को याद रखेंगे और अपने परिवार के सदस्यों के बारे में सोचेंगे।
“और वे (स्वर्ग वासी) सम्मुख होंगे एक-दूसरे के प्रश्न करते हुए। वे कहेंगेः "इससे पूर्व हम अपने परिजनों में (ईश्वर के दंड से) डरते थे। तो ईश्वर ने उपकार किया हमपर तथा हमें सुरक्षित कर दिया तापलहरी की यातना से। इससे पूर्व हम वंदना किया करते थे उसकी। निश्चय वह अति परोपकारी, दयावान् है।" (क़ुरआन 52:25-28)
ईश्वर और नर्क के निवासियों के बीच बातचीत
ईश्वर और नर्क के लोगों के बीच हम जो बातचीत पाते हैं, वे अधिक नहीं हैं। हम अधिक आसानी से क़ुरआन में छंद देखते हैं जहां नर्क के निवासी आपस में या स्वर्गदूतों के साथ बातचीत करते हैं जो नर्क के द्वार की रखवाली करते हैं। हालाँकि एक बातचीत है जो विचित्र है और यह हमारे दिमाग में स्पष्ट होनी चाहिए, ताकि हम इन भयानक शब्दों को कभी भी सुनने से खुद को बचा सकें। नर्क के निवासी कहेंगे:
"हमारे पालनहार! हमें इससे निकाल दे, यदि अब हम ऐसा करें, तो निश्चय हम अत्याचारी होंगे।"
वह (ईश्वर) कहेगाः "इसीमें अपमानित होकर पड़े रहो और मुझसे बात न करो!” (क़ुरआन 23:107-108)
ईश्वर और स्वर्ग के लोगों के बीच बातचीत
पैगंबर मुहम्मद की परंपराओं में हम ईश्वर और ईश्वर की दया से नर्क की पीड़ा से बाहर निकलने वाले अंतिम व्यक्ति के बीच एक बहुत ही मार्मिक और आनंदमय बातचीत पाते हैं। वयक्ति को स्वर्ग में आने का न्यौता दिया जायेगा, तो वह उसमें जाकर सोचेगा कि स्वर्ग भरा हुआ है। वह व्यक्ति ईश्वर के पास लौटेगा और कहेगा, "मेरे ईश्वर, मैंने स्वर्ग को भरा हुआ पाया," और ईश्वर जवाब देंगे, "जाओ और स्वर्ग में प्रवेश करो क्योंकि ये तुम्हारी दुनिया से दस गुना बेहतर है और इसमें सब कुछ है"। पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "वह वही है जो स्वर्ग के लोगों के स्तर में सबसे नीचे होगा।"[1]
एक और व्यक्ति से ईश्वर पूछेगा कि क्या उसके पास वह सब कुछ है जो वह चाहता है और वह अपने ईश्वर को यह कहते हुए जवाब देगा कि "हाँ, लेकिन मुझे चीजें उगाना पसंद है।" तब वह जाकर अपने बीज बोएगा, और पलक झपकते ही वे बढ़ेंगे, पकेंगे, और काटे जाएंगे, और पहाड़ों के जैसे उसके ढेर बन जाएंगे।[2]
हम अपनी इस तीन भागो की श्रृंखला को एक बहुत ही सुंदर कहावत के साथ इस उम्मीद में समाप्त करते हैं कि हर कोई जो इस खूबसूरत बातचीत को पढ़ता या सुनता है, अपने जीवन के अंत में और उसके बाद की शुरुआत में, इस बातचीत का हिस्सा होगा।
ईश्वर स्वर्ग के लोगों से कहेगा: “हे स्वर्ग के लोगों!" वे उत्तर देंगे: "हे हमारे ईश्वर, हम यहां हैं, और सब अच्छाई तेरे हाथ में है।" ईश्वर कहेगा: “क्या तुम संतुष्ट हो? वे जवाब देंगे: "हमें संतुष्ट क्यों नहीं होना चाहिए जब आपने हमें वह दिया है जो आपने अपनी किसी अन्य रचना को नहीं दिया है।" ईश्वर कहेगा, “क्या मैं तुझे इससे भी उत्तम कुछ ना दूं?" वे कहेंगे: “ऐ हमारे पालनहार! इससे बेहतर क्या हो सकता है?" ईश्वर कहेगा: "मैं तुम्हें अपना सुख देता हूं और मैं इसके बाद कभी भी तुम पर क्रोधित नहीं होऊंगा।"[3]
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