हेराक्लियस के जैसा न बनें (भाग 2 में से 1): और हकीकत साफ़-साफ़ बयान कर दी गई
विवरण: दो व्यक्तियों की कहानी जिन्होंने इस्लाम क़बूल करने के बजाय अपने शाश्वत जीवन को खतरे में डालने का विकल्प चुना।
- द्वारा Aisha Stacey (© 2012 NewMuslims.com)
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 10 Jan 2022
- मुद्रित: 0
- देखा गया: 8,042 (दैनिक औसत: 7)
- द्वारा रेटेड: 0
- ईमेल किया गया: 0
- पर टिप्पणी की है: 0
इस्लाम के इतिहास में दो ऐसे प्रतिष्ठित व्यक्ति गुज़रे हैं जिन्होंने इस्लाम लाने से तब भी इनकार कर दिया, जब कि उनके सामने हकीकत को एकदम साफ़-साफ़ पेश कर दिया गया। उन दोनों व्यक्तियों ने इस्लाम को समझा, उसकी प्रशंसा की और वे अपने-अपने तरीके से, पैगंबर मुहम्मद से स्नेह भी रखते थे। उनमें से एक थे बाइज़ेंटाइन साम्राज्य के राजा हेराक्लियस और दूसरे थे अबू तालिब, जो पैगंबर मोहम्मद के प्यारे चाचा थे। इन दोनों व्यक्तियों ने इस्लाम की सुंदरता को सराहा मगर सामाजिक दबाव के चलते इस्लाम को क़बूल करने से इनकार कर दिया।
जब भी कोई व्यक्ति इस्लाम धर्म को अपनाने के बारे में सोचता है तो उसे अक्सर ही बाहरी दबावों को सामना करना पड़ता है। मेरे माता-पिता, पत्नी या भाई क्या कहेंगे, वे ये सवाल खुद से पूछते है। काम पर क्या असर पड़ेगा, मैं उनसे ये कैसे कहूंगा कि मैं अब काम के बाद मधुशाला (बार) नहीं जा सकता? ये बातें मामूली लग सकती हैं लेकिन अक्सर ही ये काफी बड़े मसले की वजह बनते हैं, जो उन्हें अपने फैसले को लेकर बार-बार विचार करने पर मजबूर कर देता है। यहां तक कि उनके द्वारा इस्लाम क़बूल कर लेने और प्रारंभिक उत्साह के ख़त्म हो जाने के बाद भी, उन्हें अन्य बाहरी दबावों का सामना करना पड़ता है।
हेराक्लियस और अबू तालिब इस बात के दो ऐसे काफी अलग उदाहरण हैं कि इस अस्थायी जीवन से जुड़े मामलों की खातिर कोई इंसान कैसे अपनी आख़ेरत (परलोक के जीवन) को खतरे में डाल सकता है।
हेराक्लियस – बाइज़ेंटाइन साम्राज्य के राजा
628 ई. में, पैगंबर मुहम्मद ने हेराक्लियस को एक पत्र भेजा जिसमें उन्होंने उसे इस्लाम स्वीकार करने के लिए आमंत्रित किया था। वह पत्र उन पत्रों में से एक था जिसे खुद पैगंबर मुहम्मद ने उस समय कई राष्ट्र के सम्राटों को भेजा था। प्रत्येक पत्र को पैगंबर मुहम्मद ने ख़ासतौर से उस व्यक्ति को ध्यान में रखते हुए लिखा था। हेराक्लियस को लिखे गए पत्र का कुछ हिस्सा इस प्रकार है।
मैं आपको इस्लाम में शामिल होने के लिए यह निमंत्रण पत्र लिख रहा हूं। अगर आप एक मुसलमान बन जाते हैं, तो आप सुरक्षित रहेंगे - और ख़ुदा आपके ईनाम को दोगुना कर देगा, लेकिन अगर आप इस्लाम में शामिल होने के इस दावत को अस्वीकार करते हैं, तो आप अपनी प्रजा को गुमारही के रास्ते पर ले जाने के पाप के भागी होंगे। अतः मैं आपसे निम्न बातों पर ध्यान देने की आग्रह करता हूं : “हे पवित्रशास्त्र के लोगों! आओ एक ऐसी (इंसाफ़ वाली) बात की तरफ़ जो हमारे और तुम्हारे दरमियान सामान्य है, वह यह कि हम अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करें और उसके साथ किसी को शरीक न ठहराएं, और हम में से कोई किसी दूसरे को अल्लाह के सिवा रब न बनाए, फिर अगर वे उस (इंसाफ़ वाली बात) से मुंह मोड़ लें, तो कह दो कि तुम गवाह रहना कि हम तो मुसलमान (आज्ञाकारी) हैं।” मुहम्मद, अल्लाह का पैगंबर।
हेराक्लियस ने उस पत्र को नहीं फाड़ा जैसा कि खुसरो के राजा ने किया था, इसके बजाए उन्होंने इसे अपने अनुचर और मंत्रियों के सामने तेज़ आवाज़ में पढ़ा। हेराक्लियस ने भी उस पत्र को स्वीकार किया, उस पर विचार किया और उसकी सत्यता के बारे में पूछताछ की। उन्होंने अबू सुफियान से सवाल किया, जो पैगंबर और इस्लाम के कट्टर दुश्मन थे, जो व्यापार के सिलसिले में उनके राज्य में आते-जाते रहते थे। उन्होंने उसे पूछने के लिए दरबार में बुलाया। अबू सुफियान ने मुहम्मद के बारे में सच कहा और हेराक्लियस मुहम्मद के नबुव्वत के दावे की सच्चाई को मानने में सक्षम थे। हेराक्लियस ने अपने दरबार के लोगों के सामने इस्लाम की दावत रखी। इस दावत को लेकर वहां मौजूद लोगों की प्रतिक्रिया को इब्न अल-नातुर के द्वारा दर्ज की गई है।
"जब उनके राज्य के बड़े-बड़े प्रतिष्ठित लोग इकट्ठे हो गए, तो उन्होंने आज्ञा दी कि महल के सभी द्वार बंद कर दिए जाएं। फिर वे बाहर आए और बोले, “हे बाइज़ेंटाइन के वासियों! यदि सफलता तुम्हारी इच्छा है और यदि तुम सही मार्गदर्शन पाना चाहते हो और चाहते हो कि तुम्हारा साम्राज्य बना रहे, तो उभरते हुए पैगंबर के प्रति निष्ठा की शपथ लो! "इस निमंत्रण को सुनकर, चर्च के प्रतिष्ठित अधिकारी, जंगली गधों के झुंड की तरह महल के फाटकों की ओर दौड़े, लेकिन दरवाज़ा बंद पाया। हेराक्लियस ने इस्लाम के प्रति उनकी नफरत को महसूस करते हुए, यह उम्मीद खो दी कि वे कभी भी इस्लाम को स्वीकार करेंगे और उन्होंने आदेश दिया कि उन सभी को बैठक के कमरे में वापस ले जाया जाए। उन लोगों के वापस आने के बाद, उन्होंने कहा, "मैंने अभी जो कुछ भी कहा था वह केवल आपके विश्वास की ताकत को परखने के लिए कहा था, और मैंने उसे देख लिया। "लोगों ने उसके सामने सर झुका दिया और उनसे खुश हो गए, और हेराक्लियस सच्चाई के रास्ते से फिर गया।"
हेराक्लियस स्पष्ट रूप से उन दोनों चीज़ों से आश्वस्त और प्रभावित थे, जो उन्होंने पढ़ा था और जो उन्होंने अपनी जांच के परिणामों से पाया था। तो आखिर वह मुकर क्यों गए? क्या उन्हें अपनी शक्ति और पद को खो देने का डर था? क्या उन्हें अपनी जान गंवा देने का डर था? ज़ाहिर है, उनका दिल इस्लाम को अपनाने की ओर झुक गया था और उन्होंने निश्चित रूप से अपने लोगों को गुमराह न करने की मुहम्मद की सलाह को गंभीरता से लेते हुए अपने लोगों को समझाने की कोशिश की। हेराक्लियस पर भ्रम की इस दुनिया की पकड़ बहुत मजबूत साबित हुई। वे इस्लाम को स्वीकार किए बिना ही इस दुनिया से चल बसे[1]।
यह एक ऐसी समस्या है जिसका सामना उन लोगों को शायद हर रोज़ करना पड़ता है, जो किसी धर्म को अपनाना चाहते हैं। किसी धर्म को अपनाने का निर्णय बगैर सोचे-समझे नहीं लेना चाहिए क्योंकि यह एक जीवन बदल देने वाला फैसला होता है। हालांकि, किसी इंसान को इस्लाम की दावत को यूं ही अस्वीकार भी नहीं कर देनी चाहिए, क्योंकि यह कोई नहीं जानता कि उन्हें फिर कभी इसका अध्ययन करने का मौका मिलेगा या नहीं।
अबू तालिब
पैगंबर मुहम्मद तब आठ साल के थे जब वे अपने चाचा अबू तालिब के संरक्षण और देखभाल में आए। मुहम्मद और अबू तालिब के बीच काफी स्नेह था और जब अबू तालिब पर कठिन समय आया, तो पैगंबर मुहम्मद ने ही उनके एक बेटे अली को पाला, जो बड़े होकर मुहम्मद के दामाद और इस्लामिक राष्ट्र के चौथे खलीफा भी बने। इस्लाम के संदेश का प्रचार करने के चलते पैगंबर मुहम्मद के कई दुश्मन बन गए थे। अबू तालिब, जो कि मक्का के एक बड़े ही सम्मानित व्यक्ति थे, उन्होंने मुहम्मद की यथासंभव रक्षा की। यहां तक कि जब उन्हें अपने भतीजे को चुप कराने या रोकने के लिए कहा गया, तब भी उन्होंने दृढ़ता से मुहम्मद का पक्ष लिया।
हालांकि वे पैगंबर मुहम्मद के सबसे बड़े समर्थकों में से एक थे, फिर भी अबू तालिब ने इस्लाम को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। यहां तक कि जब वे अपनी मृत्यु शय्या पर थे तब पैगंबर मुहम्मद ने उनसे इस्लाम स्वीकार करने की गुहार तक लगाई, लेकिन उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि वे अपने पूर्वजों के धर्म से खुश हैं। अबू तालिब इस बात से डरते थे कि अगर उन्होंने इस आखरी समय में अपने बाप-दादा के धर्म को त्याग दिया, तो मक्का के लोगों के बीच उनकी प्रतिष्ठा और सम्मान ख़त्म हो जाएगी। वही सम्मान जिसकी वजह से उन्होंने चालीस से अधिक वर्षों तक पैगंबर मुहम्मद की रक्षा करने और उनकी पालन-पोषण करने का काम किया, साथ ही अपने भतीजे के खातिर बड़े-बड़े संकट के दौर से गुज़रे, वही सम्मान उन्हें इस्लाम को अपनाने की अनुमति नहीं दिया।
मुहम्मद की नबुव्वत के शुरुआत से ही, नए धर्म को अपनाने के इच्छुक लोगों ने व्यक्तिगत संकट का सामना किया है और अल्लाह की इच्छा को पाने के लिए कठोर फैसले किए हैं। बाहरी दबाव, जैसे कि अपने परिवार और दोस्तों को नाराज़ करना या नौकरी खो देना, ये ऐसे डर हैं जिसके चलते कई लोग आख़ेरत (परलोक के जीवन) में अपनी भलाई को जोखिम में डालते हैं। इस संसार के क्षणिक और अस्थायी लाभों के लिए अपने अनंत स्वर्गीय जीवन का सौदा करना एक बड़ी भूल होगी।
अगले लेख में, हम इस विषय पर चर्चा करेंगे कि कोई व्यक्ति समकालीन दबावों का सामना किस प्रकार कर सकता है और इस्लाम को अपनाने के सफ़र को आसान बनाने के लिए कुछ दिशानिर्देश भी प्रदान करेंगे।
फुटनोट:
[1] ऐसे भी बहुत से लोग हैं जो मानते हैं कि हेराक्लियस ने गुप्त रूप से इस्लाम क़बूल कर लिया था, हालांकि, ये बात सिर्फ ईश्वर ही को मालूम है।
टिप्पणी करें