परलोक की यात्रा (8 का भाग 8): निष्कर्ष
विवरण: स्वर्ग और नरक का अस्तित्व होने के कुछ कारण।
- द्वारा Imam Mufti (co-author Abdurrahman Mahdi)
- पर प्रकाशित 04 Nov 2021
- अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
- मुद्रित: 0
- देखा गया: 9,632 (दैनिक औसत: 8)
- द्वारा रेटेड: 0
- ईमेल किया गया: 0
- पर टिप्पणी की है: 0
इस्लाम के पैगंबर मुहम्मद, जिनकी मृत्यु 632 में हुई थी, उन्होंने कहा था:
"यह संसार एक आस्तिक के लिये एक कारागार है, परंतु एक नास्तिक के लिये एक स्वर्ग है। जबकि एक नास्तिक के लिये परलोक कारागार है, एक आस्तिक के लिये वह उसका स्वर्ग होगा।"
एक बार, इस्लाम के प्रारम्भिक काल में, एक निर्धन ईसाई की इस्लाम के एक महान विद्वान से भेंट हुई, जो उस समय अच्छे कपड़े पहने हुए एक बढ़िया घोड़े पर सवार था। ईसाई ने धनी मुस्लिम को ऊपर दी गई हदीस सुनाते हुए कहा: "फिर भी मैं, एक गैर-मुस्लिम, निर्धन और इस दुनिया में बेसहारा आपके सामने खड़ा हुआ हूँ, जबकि आप मुस्लिम हैं, धनी हैं और सम्पन्न हैं।" विद्वान ने उत्तर दिया: "निस्संदेह। लेकिन अगर तुम यह वास्तविकता जानते कि उस दुनिया में तुम्हें क्या मिलने वाला है (शाश्वत दंड), तो उसके तुलना मेंइस समय तुम अपने आप को स्वर्ग में ही समझते। और अगर तुम यह वास्तविकता जानते कि उस दुनिया में मेरे लिये क्या है (अनंत आनंद), तो तुम उसकी तुलना में मुझे इस समय कारागार में ही समझोगे।"
अतः, यह ईश्वर की महान करुणा और न्याय ही है जिसके कारण उसने स्वर्ग और नरक की स्थापना की।नरक की अग्नि का ज्ञान ही मनुष्य को गलत काम करने से रोकता है जबकि स्वर्ग की एक झलक उसे अच्छे काम करने और न्यायपूर्ण रहने के लिये प्रेरित करती है। जो अपने ईश्वर को मान नहीं देते, दुष्ट कार्य करते हैं और जिसका उनको पश्चाताप भी नहीं होता वे नरक में प्रवेश करेंगे: एक ऐसा स्थान जहाँ दारुण पीड़ा है और कष्ट हैं। जबकि न्यायपूर्ण रहने के लिये एक ऐसा स्थान पुरुस्कार में मिलता है जहाँ अकल्पनीय भौतिक सौन्दर्य और संपूर्णता है और यही ईश्वर का स्वर्ग है।
अक्सर, लोग अपनी आत्मा के अच्छे होने का प्रमाण देने के लिये यह देते हैं कि वे जो भी अच्छा काम करते हैं वह केवल और केवल ईश्वर के प्रति अपने सच्चे प्रेम के कारण ही करते हैं या फिर एक सार्वभौमिक नैतिक और गुणों से भरपूर धार्मिक नियमों की संहिता के अनुसार जीने के लिये करते हैं, उन्हें किसी प्रलोभन या दंड की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन ईश्वर जब मनुष्य से क़ुरआन में कुछ कहते हैं, तो वह उसकी ढुलमुल आत्मा को जानते हुए कहते हैं। स्वर्ग की खुशियां वास्तविक, भौतिक, और अनुभव-योग्य हैं। मनुष्य स्वर्ग में मिलने वाले भोजन, कपड़े और घर जैसी असाधारण, असीमित और अनंत वस्तुओं के आकर्षण को सही तरह से समझना आरंभ कर सकता है क्योंकि उसे पता है कि इस संसार में यह सब वस्तुएं कितना संतोष और सुख देती हैं।
"लोगों के लिए उनके मन को मोहने वाली चीज़ें, जैसे स्त्रियाँ, संतान, सोने चाँदी के ढेर, निशान लगे घोड़े, पशुओं तथा खेती शोभनीय बना दी गई हैं। ये सब सांसारिक जीवन के उपभोग्य हैं और उत्तम आवास अल्लाह के पास है।" (क़ुरआन 3:14)
इसी तरह, इंसान यह समझना आरंभ कर सकता है कि नरक की अग्नि और उससे संबंधित वस्तुएं कितनी दुखदायी और भयानक हो सकती हैं, क्योंकि उसे पता है कि इस संसार में अग्नि से जलना कितना कष्टप्रद होता है। इसलिए, मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा को, जैसा कि ईश्वर और उनके पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) ने विस्तार से बताया है, और कुछ नहीं बल्कि केवल एक ऐसे प्रोत्साहन की तरह ही काम करना चाहिए जिसके महान उद्देश्य को सारी मानवता निश्चय ही और सच में समझती है जो है: निश्चल प्रेम, श्रद्धा और कृतज्ञता के साथ अपने निर्माता की पूजा और सेवा। आखिरकार,
"...उनको इसके अतिरिक्त और कोई निर्देश नहीं था कि सिर्फ अल्लाह की पूजा करें, एक ईमानदार धर्म (इस्लाम) के प्रति निष्ठावान रहते हुए।" (क़ुरआन 98:5)
लेकिन, मानवजाति के उन असंख्य लोगों को जो, आदि काल से अपने ईश्वर और उसके बंदों के प्रति अपने नैतिक कर्तव्यों की उपेक्षा करते आए हैं, यह नहीं भूलना चाहिए कि:
"प्रत्येक प्राणी को मौत का स्वाद चखना है और तुम्हें, तुम्हारे कर्मों का प्रलय के दिन भरपूर प्रतिफल दिया जायेगा, तो (उस दिन) जो व्यक्ति नरक से बचा लिया गया तथा स्वर्ग में प्रवेश पा गया, तो वह सफल हो गया तथा सांसारिक जीवन धोखे की पूंजी के सिवा कुछ नहीं है।।"(क़ुरआन 3:185)
टिप्पणी करें